Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
१५३
६५६.
महुरपरिणाम सामं, समं तुला सम्म खीर-खंडजुई। दोरे हारस्स चिई', इगमेयाइं२ तु दव्वम्मि । आओवमाइ परदुक्खमकरणं रागदोसमज्झत्थं । नाणाइतिगं तस्साय-पोतणं भावसामाई ॥ समता-सम्मत्त-पसत्थ, संति-'सिव-हित सुहं अणिदं च। अदुगुंछितमगरहितं', 'अणवजमिमे वि एगट्ठा" ॥ को कारओ? करतो किं कम्मं? जं तु कीरई तेण। किं कारग-करणाण य, अन्नमणन्नं च अक्खेवो' । आया हु कारगो मे, सामाइयकम्मकरणमाया य। परिणामे सइ आया, सामाइयमेव उ पसिद्धी ॥ एगत्ते जह मुट्ठि, करेइ अत्यंतरे घडादीणि। दव्वत्थंतर भावे, गुणस्स किं केण संबद्धं २ ॥ नाम ठवणा दविए, 'आदेसे निरवसेसए चेव'१३ । तह ‘सव्वधत्त सव्वं'१९, च भावसव्वं च सत्तमयं५ ।। कम्मवमज्ज१६ जं गरहितं.७ ति कोहादिणो व चत्तारि। सह तेण जो उ जोगो, पच्चक्खाणं हवइ तस्स ॥ दव्वे मण-वय-काए, जोगा दव्वा दुहा उ भावम्मि। जोगा सम्मत्ताई, पसत्थ इयरो उ विवरीओ॥
६६३.
६६४.
१. विगइ (अ)।
के क्रम में व्याख्यात हैं। ये गाथाएं निगा की होनी चाहिए क्योंकि २. इग सेसाइ (ला)।
भाष्यकार ने इन गाथाओं की विस्तृत व्याख्या की है। ३. आत्मोपमानेन परदुःखाकरणं मकारोऽलाक्षणिक: (मटी प५७५)। ११. महे (३४३१) तथा स्वो (४१५७) में गाथा का उत्तरार्ध क्रमश: इस ४. समत्त (चू)।
प्रकार है५. सुविहिय (ब, हा, रा, ला)।
तम्हा आया सामाइयं च परिणामओ इक्कं (महे)। ६. अनिद्धं (चू)।
तम्हा आता सामाइयं च परिणामतो एक्कं (स्वो) | ७. "मगरिहियं (ब)।
१२. यह गाथा स्वो और महे में नहीं है किन्तु चूर्णि में व्याख्यात है। ८. अणवजं चेव एकट्ठा (चू), ६५५-५८ ये चार गाथाएं स्वो और महे में १३. आदेसं चेव णिरवसेसं च (स्वो)।
नहीं हैं। ये गाथाएं सभी हस्तप्रतियों में हैं तथा चूर्णि में भी व्याख्यात १४. धत्तासव्वं (महे)। हैं। इनमें सामायिक के एकार्थक एवं उसके निक्षेप हैं । मुद्रित हा, १५. स्वो ७२७/४२११,इस गाथा के बाद हस्तप्रतियों में दविए...... म, दी में ये निगा के क्रम में हैं।
(हाटीभा १८५) अणिमिसिणो.....(हाटीभा १८६) सा हवइ...... ९. तु (ब)।
(हाटीभा १८७) भावे.......(हाटीभा १८८) ये चार मूलभाष्य की १०. स्वो (४१४६) और महे (३४२०) में इसका उत्तरार्ध इस प्रकार है- गाथाएं हैं। ब और ला प्रति में 'गाथा चतुष्कं भाव्या' का उल्लेख है।
किं कारओ अ करणं, च होइ अण्णं अणण्णं ते। १६. कम्मं वज (बपा, लापा, हाटीपा, मटीपा)।
६५९, ६६० ये दो गाथाएं स्वो और महे में नियुक्तिगाथा के १७. गरिहिअं (म, हा), ६६३, ६६४ इन दो गाथाओं का महे और स्वो रूप में स्वीकृत न होकर भागा के क्रम में हैं। हा, म, दी में ये निगा में निर्देश नहीं है।
१८. वइ (म, दो, स)।
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