Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति मांगो।' उस चित्रकार ने कहा- 'आप मुझे यह वरदान दें कि अब आगे से आप किसी को नहीं मारेंगे।' यक्ष बोला-'ठीक है। जैसे मैंने तुमको नहीं मारा, वैसे ही दूसरों को भी नहीं मारूंगा और कुछ वरदान मांगो।' तब वह बोला- 'जिस द्विपद, चतुष्पद अथवा अपद के शरीर का एक अंश भी मैं देख लूं तो उसका यथार्थ चित्रांकन कर सकू-ऐसा मुझे वरदान दें।' यक्ष ने 'तथास्तु' कहकर उसे वह वरदान भी दे दिया। वरदान प्राप्त करने पर राजा ने उसका सम्मान किया। वह वहां से कौशाम्बी चला गया।
कौशाम्बी नगरी के राजा शतानीक ने एक दिन सुखासीन होकर अपने दूत से पूछा-'मेरे पास ऐसी कौन सी वस्त नहीं है. जो अन्य राजाओं के पास है?'दत बोला-'राजन! आपके पास चि सभा नहीं है।' नीतिकारों का कथन है कि देवों की कार्यसिद्धि मन से चिन्तन करने मात्र से और राजाओं की कार्यसिद्धि वचनमात्र से हो जाती है-'मणसा देवाणं, वायाए पत्थिवाणं।' राजा ने तत्काल चित्रकारों को आमंत्रित किया। नगर के मुख्य चित्रकार आ गए। राजा ने चित्रसभा के लिए प्रायोजित भवन के पृथक्
ग कर एक-एक चित्रकार को चित्र बनाने के लिए एक-एक विभाग सौंप दिया। वरदान प्राप्त चित्रकार को राजा के अन्त:पुर के क्रीड़ा-प्रदेश वाला भाग सौंपा गया। सभी चित्रकार अपने-अपने विभाग में चित्र करने लगे। वरदानप्राप्त चित्रकार भी क्रीड़ा-प्रदेश में यथानुरूप चित्र बनाने लगा। एक बार उसने जाली के अन्दर से महारानी मृगावती के पैर का अंगूठा देख लिया। उसने जान लिया कि यही रानी मृगावती है। उसने अंगुष्ठ के आधार पर महारानी का यथार्थ रूप चित्रित कर दिया। वह महारानी की खुली आंखें चित्रित कर रहा था। उस समय काले वर्ण की एक बूंद चित्रगत मृगावती की जंघा पर गिर पड़ी। चित्रकार ने उसे पोंछ डाला। चित्रांकन करते समय पुनः एक बूंद वहीं गिरी। चित्रकार ने उसे भी पोंछ डाला। तीन बार ऐसा ही हुआ। तब चित्रकार ने सोचा कि रानी की जंघा पर ऐसा चिह्न होना ही चाहिए। उसने जंघा पर वैसा ही चिह्न कर दिया।
सभी चित्रकारों ने अपना-अपना कार्य पूरा कर दिया। चित्रसभा निर्मित हो गई। राजा चित्रसभा देखने आया। अवलोकन करते-करते वह चित्रित क्रीडा-प्रदेश पर पहुंचा। उसने मृगावती का चित्र देखा । जंघा पर उस काले चिह्न को देखकर वह रुष्ट हो गया। उसकी भौंहें तन गई। उसने मन ही मन सोचा-'इस चित्रकार ने मेरी पत्नी से समागम किया है, अन्यथा यह चिह्न उसे कैसे ज्ञात होता?' यह सोचकर राजा ने उस चित्रकार के वध की आज्ञा दे दी। सभी चित्रकार राजा के पास आकर बोले- 'राजन्! यह चित्रकार वरदान प्राप्त है। यह एक अवयव को देखकर पूरे रूप का चित्रण कर सकता है।' तब राजा ने परीक्षा के लिए एक कुब्जा को बुला भेजा और उसका केवल मुख चित्रकार को दिखाया। उसने उसके आधार पर कुब्जा का पूरा रूप बना दिया। फिर भी राजा ने चित्रकार के दाएं हाथ के अंगुष्ठ और तर्जनी के अग्रभाग का छेदन करवाकर उसको देश-निकाला दे दिया।
चित्रकार पुनः यक्षायतन में गया और एक उपवास कर यक्ष की आराधना की। यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा-'जाओ, तुम अपने बाएं हाथ से भी पूर्ववत् चित्र बना सकोगे।' चित्रकार को वरदान मिल गया। उसके मन में महाराज शतानीक के प्रति प्रद्वेष हो गया। उसने सोचा-'शतानीक का शत्रु महाराजा प्रद्योत
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