Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक निर्युक्ति
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करने निकला । अन्य कुमार भी अपने-अपने अन्त: पुर के साथ प्रस्थित हुए। नंदिषेण का अन्तःपुर श्वेत परिधान में था। वह पद्मसरोवर के मध्य हंसिनियों की भांति अत्यंत शोभित हो रहा था। सभी रानियां सुअलंकृत थीं। वे अन्यान्य अन्तःपुर की रानियों की शोभा को हरण कर रहीं थीं। अस्थिरमना मुनि ने उन्हें देखकर सोचा- 'मेरे पूज्य आचार्य नंदिषेण ने इतना सुंदर अन्तःपुर छोड़ा है । हतभाग्य मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं छोड़ा है फिर मैं भोग के लिए गृहवास में क्यों जाऊं ? यह चिंतन कर वह निर्वेद को प्राप्त हुआ और आलोचन-प्रतिक्रमण कर संयम में स्थिर हो गया।' यह नंदिषेण और साधु दोनों की पारिणामिकी बुद्धि थी । २००. धनदत्त
धनदत्त सुंसुमा का पिता था। चोर सुंसुमा का अपहरण कर पलायन करता हुआ उसका सिर काटकर ले गया, धड़ को वहीं फेंक दिया। चोर का पीछा करने वाले पिता-पुत्र भूख से व्याकुल हो गए। तब सोचा- 'सुसुमा के धड़ के मांस को खाकर भूख मिटाएं, अन्यथा बीच में ही मर जायेंगे। कथा के विस्तार हेतु देखें चिलातक और सुंसुमा कथा सं. ११५ पृ. ४५३, ४५४, ज्ञा. १ / १८ ।
२०१. श्रावक
एक श्रावक के परस्त्रीगमन का प्रत्याख्यान था। संयोगवश वह एक दिन अपनी पत्नी की सखी पर आसक्त हो गया। आग्रहपूर्वक पूछने पर पत्नी को यथार्थ बात का ज्ञान हुआ। उसने सोचा कि यदि ये इस आर्त्तध्यान अध्यवसाय में मृत्यु को प्राप्त होंगे तो नरक अथवा तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होंगे। वह पति को आश्वस्त कर अपनी सखी के वस्त्राभूषणों से सज्जित होकर वहां आई। उसने उसे अपनी पत्नी की सखी समझकर कामनापूर्ति की । प्रातः काल उसे प्रत्याख्यान की बात याद आई। वह ग्लानि से भर गया । उसमें संवेग जागा । तब पत्नी ने यथार्थ बात बताकर उसे आश्वस्त कर दिया। आचार्य के पास जाकर दोषों की आलोचना करके वह शुद्ध हो गया । यह उसकी पत्नी की पारिणामिकी बुद्धि थी ।
२०२. ( अ ) अमात्य
ब्रह्मदत्त को लाक्षागृह में जलाकर मारने का षड़यंत्र रचा गया । वरधनु के पिता अमात्य थे । उन्होंने लाक्षागृह ह बनाने की बात सुनकर सोचा- 'ब्रह्मदत्त कुमार इसमें जलकर मर न जाए, उसकी किसी भी प्रकार से रक्षा करनी चाहिए ।' तब उन्होंने सुरंग खुदवाकर उसे सुरक्षित बाहर निकाल दिया । ब्रह्मदत्त वहां से पलायन कर गया। विस्तार हेतु देखें निर्युक्ति पंचूक परि. ६ पृ. ५८३, ५८४ ।
(ब) अमात्य
एक राजा को अपनी पत्नी से बहुत प्रेम था। एक दिन वह अचानक कालगत हो गई। उसकी मौत राजा मूढ़ हो गया। वह रानी के वियोग से दुःखी होकर अपने शरीर की सार-संभाल नहीं करता था ।
१. आवनि. ५८८/२२, आवचू. १ पृ. ५५९, ५६०, हाटी. १ पृ. २८७, मटी. प. ५२९ । २. आवनि. ५८८/२२, आवचू. १ पृ. ५६०, हाटी. १ पृ. २८७, मटी. प. ५२९ ।
३. आवनि. ५८८/२२, आवचू. १ पृ. २८७ २८८, हाटी. १ पृ. २८७, मटी. प. ५२९ । ४. आवनि. ५८८/२२, आवचू. १ पृ. ५६०, हाटी. १ पृ. २८७, मटी. प. ५२९ । ५. कुछ आचार्य अमात्य के अन्तर्गत इस कथा को कहते हैं ।
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