Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 576
________________ ५१५ आवश्यक नियुक्ति २१६. नमस्कार मंत्र से कामनिष्पत्ति एक श्राविका थी। उसका पति मिथ्यादृष्टि था। वह दूसरी पत्नी लाना चाहता था क्योंकि उससे उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई थी। उसने सोचा-"प्रथम पत्नी के रहते मुझे दूसरी मिलेगी नहीं अतः इसे कैसे मृत्युधाम पहुंचाया जाए?' एक दिन एक काले नाग को घड़े में डालकर वह घर ले आया और उसे गुप्त स्थान में रख दिया। भोजन करने के पश्चात् उसने अपनी पत्नी से कहा- 'फूल ले आओ। मैंने उन्हें अमुक घड़े में रखा है।' वह कमरे में गई। अंधकार के कारण वह नमस्कार मंत्र का पाठ करती हुई आगे बढ़ी। उसने सोचा, यदि अंधकार में मुझे कोई जीव काट खाए तो भी मेरा नमस्कार मंत्र न छूटे। उसने घड़े में हाथ डाला। देवता ने घड़े से सर्प का अपहरण कर उसे एक फूल की माला बना दिया। श्राविका ने माला लाकर अपने पति को दी। उसने संभ्रान्त होकर सोचा, यह और किसी घट से ले आई है। पत्नी को पूछा तो उसने कहा- 'जिस घड़े से आपने लाने के लिए कहा था, उसी से लाई हूं।' वह घड़े के पास गया। घड़े को देखा तो उसमें से फूलों की गंध आ रही थी। घड़े में सर्प था ही नहीं। वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने पत्नी से क्षमायाचना की और उसके पैरों में गिर गया। तत्पश्चात् वह श्राविका घर की स्वामिनी बन गई। २१७. नमस्कार मंत्र से आरोग्य प्राप्ति एक नगर में हिंसक धंधा करने वाला एक व्यक्ति नदी के तट पर शौचार्थ गया। नदी में उसने एक बिजौरे को तैरते देखा। उसने उसे निकाल कर राजा को उपहत किया। राजा ने उसे अपने रसोइए को दे दिया। राजा जब भोजन करने आया तक उसके सामने रखा। राजा ने देखा कि वह बिजौरा प्रमाण से अतिरिक्त बृहद् तथा वर्ण और गंध में भी अतिरिक्त था। राजा उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बिजौरा भेंट करने वाले पर वह तुष्ट हुआ और उसे प्रचुर धन दिया। राजा ने अपने आदमियों से कहा- 'और बिजौरे लेकर आना है।' लोग पाथेय लेकर नदी के तट से चले। वे एक वनखण्ड में गए। वहां से जो फल लेता. वह मर जाता। उन्होंने आकर राजा को सारी बात कही। राजा बोला- 'कुछ भी हो, वे फल अवश्य लाने हैं। अक्षपातनिका के क्रम से जाएं।' लोग जाकर फल लाने लगे। एक उस वनखण्ड में जाता। फल तोड़कर वह बाहर फेंक देता। दूसरे लोग वहां से फल ले आते। वनखण्ड में जाने वाला व्यक्ति मर जाता। काल बीतने लगा। इसी क्रम में एक श्रावक की बारी आई। वह वहां गया और उसने सोचा कि कोई श्रामण्य से विराधक होकर यहां व्यंतर देव न बना हो इसलिए उसने नैषेधिकी की और नमस्कार महामंत्र का जाप करता हुआ भीतर गया। वहां का अधिष्ठाता व्यंतर देव संबुद्ध हुआ। उसने वंदना कर श्रावक से कहा- 'मैं फल वहीं लाकर दे दंगा।' श्रावक ने जाकर राजा से सारी बात कही। राजा बहत प्रसन्न हआ। श्रावक को यथेष्ट धन देकर राजा ने उसकी पूजा की। इस प्रकार श्रावक को अभिरति और भोग प्राप्त हुए साथ ही जीवन-दान भी मिला। इससे बढ़कर और क्या आरोग्य हो सकता है ? २१८. परलोक में नमस्कार मंत्र का फल (चंडपिंगलक) बंसतपुर नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था। वहां एक गणिका श्राविका चंडपिंगलक चोर के १. आवनि. ६४५, आवचू. १ पृ. ५८९, हाटी. १ पृ. ३०२, मटी. प. ५५४ । २. आवनि. ६४५, आवचू. १ पृ. ५९०, हाटी. १ पृ. ३०२, मटी. प. ५५४, ५५५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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