Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
३८७ पर प्रहरियों ने भगवान् और गोशालक को मुक्त कर दिया। परिव्राजिकाओं ने प्रहरियों से कहा- 'यह तुमने क्या किया? क्या अपना विनाश चाहते हो? ये भगवान् हैं।' प्रहरियों ने भयभीत होकर भगवान् से क्षमायाचना कर उनकी पूजा की।
भगवान् पृष्ठचंपा नगरी गए। वहां चौथा वर्षावास किया। वहां उन्होंने चातुर्मासिक तप स्वीकार कर विचित्र प्रतिमा आदि की साधना की। पृष्ठचंपा की बाहिरिका में तपस्या का पारणा कर वे कृतंगला नगरी गए। वहां दरिद्रस्थविर नामक तापस (पाषंडी) रहते थे। वे सपरिग्रही, हिंसा करने वाले तथा स्त्रियों के साथ रहते थे। उनके वाटक के मध्य एक देवकुल था। भगवान् वहां प्रतिमा में स्थित हो गए। उस दिन वहां भयंकर ठंड थी। हवा में शीत बिन्दओं का पात भी हो रहा था। उस दिन उन पाषंडियों का जागर सारी रात महिलाओं के साथ गाते-बजाते रहे। गोशालक ने कहा- 'अहो! ये पाषंडी हैं। हिंसा में रत हैं। महिलाओं के साथ रहते हैं और उनके साथ गाते-बजाते हैं। यह सुनकर पाषंडियों ने गोशालक को बाहर निकाल दिया। अत्यंत शीत पवन के कारण गोशालक बाहर संकुचित होकर बैठ गया। पाषंडियों ने अनुकंपा कर उसे भीतर बुला लिया। पुन: उसने वैसे ही शब्द कहे। उन्होंने उसे फिर बाहर निकाल दिया। पुन: दया करके वे उसे भीतर ले आए। तीन बार ऐसा हुआ। उसने फिर कहा- 'मैं स्पष्ट कहता हूं तो मुझे बाहर निकाल दिया जाता है। दूसरे लोगों ने कहा- 'यह देवार्य महावीर का सेवक अथवा भगवान् का छत्रधर होगा अत: मौन रहो।' वह बैठ गया। पाषंडियों ने अपने वाद्य जोर-जोर से बजाने प्रारंभ कर दिए, जिससे गोशालक के शब्द सुनाई न पड़ें।
___ भगवान् श्रावस्ती नगरी के बाह्य उद्यान में प्रतिमा में स्थित हो गए। गोशालक ने पूछा- 'आप चलेंगे?' सिद्धार्थ बोला-'आज तपस्या है।' उसने पूछा-'आज मझे भोजन में क्या प्राप्त होगा?' सिद्धार्थ ने कहा- 'आज तुम्हें मनुष्य का मांस खाने को मिलेगा।' उसने कहा- 'मैं आज ऐसे घर मैं भोजन करूंगा, जहां मांस संभव नहीं है। फिर मनुष्य के मांस की तो बात ही क्या?' वह नगर में भिक्षा के लिए घमने लगा।
___ श्रावस्ती नगरी में पितृदत्त नामक गृहपति रहता था। उसकी पत्नी का नाम श्रीभद्रा था। वह मृत संतान का प्रसव करने वाली थी। उसने एक दिन शिवदत्त नामक नैमित्तिक से पूछा- 'मेरी संतान जीवित कैसे रह सकती है ?' उस नैमित्तिक ने कहा- 'तुम अपने मृत गर्भ को सुशोभित कर, उसे पका कर, खीर बनाकर सुतपस्वी को दोगी तो तुम्हारी संतान जीवित रह पाएगी। तपस्वी को वह खीर खिलाकर तुम अपने घर का द्वार अन्य दिशा में कर देना, जिससे कि वह तपस्वी घटना को जान लेने पर तुम्हारा घर जला न पाए। इस प्रकार तेरी संतान जीवित रह सकेगी। उसने वैसा ही किया। गोशालक घूमता हुआ उसी के घर में गया। गृहस्वामिनी ने उसे मधु-घृत संयुक्त खीर का भोजन दिया। उसने सोचा, इसमें मांस कैसे हो सकता है ? उसने भरपेट भोजन किया। अपने स्थान पर जाकर वह बोला- 'तुम चिरकाल से निमित्त-विद्या का प्रयोग करते रहे हो पर आज वह मिथ्या हो गयी।' सिद्धार्थ बोला- 'मेरा वचन मिथ्या नहीं हो सकता। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो वमन करके देखो।' गोशालक ने वमन किया। उसमें नाखून तथा अन्य अवयवों के टुकड़े देखे। वह रुष्ट होकर उस घर की खोज में गया। उस घर के मालिक ने घर के द्वार बदल दिए थे। घर नहीं मिला तब वह चिल्लाया। जब पता नहीं लगा तब आवेश में उसने कहा- 'यदि मेरे धर्माचार्य का तप:तेज हो तो वह घर जल जाए।' तब घर की सारी बाहिरिका जल गई।
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