Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 564
________________ आवश्यक निर्युक्ति ५०३ बोला- 'मैंने ठीक ही तो कहा था कि जो जिस विषय का अभ्यास कर लेता है, वह उसमें प्रकर्ष प्राप्त कर लेता है। तुम मेरा कौशल देखो।' किसान ने भूमि पर एक वस्त्र बिछाया और मुट्ठी में मूंग लेकर बोला'यदि तुम कहो तो मैं इन सबको अधोमुख गिरा दूं, यदि कहो तो ऊर्ध्वमुख या तिरछा गिरा दूं । चोर के कहने पर उसने मूंगों को अधोमुख गिराया । तस्कर बहुत विस्मित और प्रसन्न हुआ और उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसका क्रोध उपशान्त हो गया। पद्माकार सेंध लगाना चोर की तथा मूंग को अधोमुख गिराना किसान की कर्मजा बुद्धि थी। पारिणामिकी बुद्धि की कथाएं १९४. अभयकुमार की बुद्धि एक बार उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत की सेना ने राजगृह नगरी को घेर लिया। गुप्तचरों द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर चंडप्रद्योत के आने से पूर्व अभयकुमार ने सेना के पड़ावस्थल पर प्रचुर धन गड़वा दिया। चंडप्रद्योत के आने पर अभयकुमार बोला- 'मैं आपके हित की बात बताना चाहता हूं क्योंकि मेरे लिए आपमें और पिताजी में कोई अंतर नहीं है।' चंडप्रद्योत के पूछने पर अभयकुमार बोला- 'पिताजी ने सेनापति सहित आपकी पूरी सेना को रिश्वत देकर अपने वश में कर लिया है। यदि विश्वास न हो तो गड़ा हुआ धन देख लो।' अभयकुमार ने गड़ा हुआ धन दिखाया। अभयकुमार की बात का विश्वास होने पर भयभीत होकर प्रद्योत थोड़े से सैनिकों के साथ वहां से भाग गया। अभयकुमार ने गड़ा हुआ सारा धन पुनः निकाल लिया। राजा के बिना सेनापति भी सेना सहित पुनः उज्जयिनी लौट गया। यह अभयकुमार की पारिणामिकी बुद्धि थी । कुछ आचार्य इस कथा को इस रूप में स्वीकार करते हैं - वास्तविक स्थिति का ज्ञान होने पर राजा चंडप्रद्योत अत्यंत कुपित हुआ । उसने घोषणा करवाई कि जो अभयकुमार को पकड़कर लाएगा, उसको बड़ा ईनाम दिया जाएगा। एक वेश्या ने यह बात स्वीकार की । वह कपट श्राविका बनकर राजगृह नगरी में गयी। अभयकुमार उसके धार्मिक क्रिया-कलाप से अत्यंत प्रभावित हुआ। एक बार उसने अभयकुमार को अपने यहां भोजन के लिए निमंत्रण दिया । श्राविका समझकर अभयकुमार उसके घर भोजन करने गया । वेश्या ने भोजन में मादक पदार्थ मिला दिए, जिसे खाते ही अभयकुमार मूर्च्छित हो गया। कपटपूर्वक वेश्या अभयकुमार को रथ में चढ़ाकर उज्जयिनी ले गयी और राजा के समक्ष उपस्थित किया । चंडप्रद्योत बोला- 'तुमने मुझे धोखा दिया इसलिए मैंने भी कपटपूर्वक तुमको पकड़वा कर यहां मंगवा लिया है।' अभयकुमार ने वरदान मांगा- 'मैं अग्नि में प्रवेश करना चाहता हूं।' राजा ने उसे मुक्त कर दिया, तब अभयकुमार बोला- 'जिस प्रकार आप मुझे छलपूर्वक यहां लाए हैं, वैसे ही दिन में चिल्लाते मैं आपको राजगृह नगर के मध्य से ले जाऊंगा।' अभयकुमार ने राजगृह में जाकर एक दास को पागल का अभिनय सिखा दिया। उसका नाम प्रद्योत रख दिया। अभयकुमार बनिए का रूप बनाकर उज्जयिनी गया । वह सुंदर गणिकाओं एवं दास को भी १. आवनि. ५८८/२०, आवचू. १ पृ. ५५६, हाटी. १ पृ. २८५, मटी. प. ५२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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