Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 478
________________ आवश्यक नियुक्ति ४१७ ने उन्हें निमंत्रण दिया। आर्यवज्र ने इन्द्रियों के विषय-सेवन की निन्दा की और श्रेष्ठीपुत्री से कहा- 'यदि तुम मुझे चाहती हो तो प्रव्रजित हो जाओ।' वह प्रव्रजित हो गई। आर्यवज्र ने पदानुसारी विद्या के आधार पर विस्मृत महापरिज्ञा अध्ययन (आचारांग, प्रथमश्रुतस्कंध का सातवां अध्ययन) से आकाशगामिनी विद्या का उद्धार किया। वे आकाश में गमनागमन करने में समर्थ हो गए। इस विद्या से जंबूद्वीप में जाया जा सकता है और मानुषोत्तर पर्वत पर ठहरा जा सकता है। उन्होंने कहा- 'मैं इस विद्या का उपयोग प्रवचन के उपकार के लिए करूंगा। अब मनुष्य अल्पऋद्धि वाले होंगे अतः मैं उनको यह विद्या नहीं दूंगा।' अनेक विद्याओं के धारक आचार्य वज्र विहार करते हुए पूर्वदेश से उत्तरापथ की ओर गए। वहां दुर्भिक्ष की स्थिति आ गई। सारे मार्ग व्युच्छिन्न हो गए। सम्पूर्ण संघ एकत्रित होकर आचार्य वज्र के पास आकर बोला- 'भंते! हमारा निस्तार करें।' आचार्य पटविद्या के जानकर थे। उन्होंने एक पट (वस्त्र) पर संघ को बिठाया और वह पट आकाश में उड़ने लगा। उस समय शय्यातर चारा लाने के लिए कहीं गया हुआ था। उसने संघ को आकाश-मार्ग से जाते देखा। तत्काल अपने हासिये से चोटी को काटकर वह बोला'भगवन् ! मैं भी आपका साधर्मिक हूं।' तब वह भी इस सूत्र को पढ़ते हुए उसके साथ लग गया साहम्मियवच्छल्लम्मि, उज्जुया उज्जया य सज्झाए। चरणकरणम्मि य तहा, तित्थस्स पभावणाए य॥ आचार्य वज्र अपने संघ के साथ पुरिका नगरी में आए। वहां सुभिक्ष और श्रावकों का बाहुल्य था। वहां का राजा बौद्ध धर्म का उपासक था। वहां जैन श्रावकों तथा बौद्ध श्रावकों में माल्यारोहण-मूर्तियों पर फूल चढ़ाने में कोई विवाद चल रहा था। सर्वत्र उपासक पराजित होते थे। तब वहां बौद्ध राजा ने पर्युषणपर्व पर पुष्पों का निवारण कर दिया। श्रावक खिन्न हो गए कि अब पुष्प कहां से लायेंगे? सबालवृद्ध सभी नागरिक वज्रस्वामी के पास पहुंचे और बोले-'गुरुदेव! अब आप जानें । आपके नाथ तीर्थंकरों के प्रवचन मलिन हो रहे हैं।' बहुत बार प्रार्थना करने पर आचार्य वज्र आकाश मार्ग से माहेश्वरी नगरी में गए। वहां 'हुताशन' व्यंतर का आयतन था। वहां एक कुंभ जितने पुष्प प्रतिदिन प्राप्त होते थे। वहां आचार्य के पिता का मित्र आरामिक था। उसने आचार्य को देखकर संभ्रान्त होकर पूछा-'आपका यहां आने का प्रयोजन क्या है ?' आचार्य ने कहा- 'पुष्पों को ले जाना ही एक मात्र प्रयोजन है।' आरामिक बोला-'आपने बड़ा अनुग्रह किया। मैं बाहर जाकर आ रहा हूं। आपको जितने फूल चाहिए, उतने ले लेवें।' आर्यवज्र फिर चुल्लहिमवंत पर्वत पर श्री के पास गए। श्री ने चैत्यपूजा के लिए पद्म उखाड़ा। वंदना कर श्री ने आर्य वज्र को निमंत्रित किया। उसे लेकर वे अग्निगृह में आए। वहां उन्होंने एक विमान की विकुर्वणा की और उसमें कुंभ प्रमाण पुष्पों को रखकर मुंभक देवों से परिवृत होकर दिव्य गीतों के साथ आकाशमार्ग से आए। उस कमल के वृन्त पर वज्रस्वामी स्थित थे। तब बौद्ध उपासकों ने कहा- 'यह हमारा प्रातिहार्य है, चमत्कार है।' वे सभी अर्घ्य लेकर आए। बौद्ध विहार को लांघकर वज्रस्वामी अर्हत् मंदिर में गए। देवताओं ने वहां महिमा की। वहां उन्होंने लोगों का बहुमान प्राप्त किया। राजा भी आया और वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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