Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 544
________________ आवश्यक नियुक्ति ४८३ राजा- 'क्या सोच रहे हो?' रोहक-'राजन् ! मैं सोच रहा हूं कि बकरी के पेट में मींगणियां गोल कैसे हो जाती हैं?' राजा ने कहा- 'तुमने अच्छा विमर्श किया है। इसका उत्तर तुमने क्या खोजा?' राजा के पूछने पर रोहक बोला- 'बकरी के पेट में संवर्तक नामक वायु होती है, उसके कारण मींगणी गोल हो जाती है।" १५२. पत्र दूसरे प्रहर में राजा जागा और पूछा- 'रोहक! तुम जाग रहे हो अथवा सो रहे हो?' रोहक-'जाग रहा हूं।' राजा- 'क्या सोच रहे हो?' रोहक-'सोच रहा हूं कि पीपल के पत्ते का दंड बड़ा होता है अथवा उसकी शिखा-अग्रभाग।' राजा ने पूछा- 'इसमें तुम्हारा क्या निर्णय है?' रोहक-'जब तक अग्रभाग नहीं सूखता, तब तक दोनों समान होते हैं।' १५३. गिलहरी तीसरे प्रहर में राजा जागा और पुन: पूछा- 'रोहक! तुम जाग रहे हो अथवा सो रहे हो?' रोहक- 'स्वामिन् ! जाग रहा हूं।' राजा-'क्या सोच रहे हो?' रोहक- 'मैं सोच रहा हूं कि गिलहरी के शरीर पर सफेद और काली धारियां कितनी-कितनी होती हैं ? तथा उसका शरीर लम्बा होता है अथवा पूंछ ।' राजा के पूछने पर रोहक बोला-'गिलहरी के शरीर पर जितनी सफेद धारियां होती हैं, उतनी ही काली धारियां होती हैं। उसका शरीर और पूंछ दोनों बराबर होते हैं।' १५४. पंच पिता चौथे प्रहर में राजा ने पूछा- 'रोहक! तुम सो रहे हो अथवा जाग रहे हो?' रोहक चुप रहा तब राजा ने उसे कम्बिका-बांस की खपच्ची से छुआ। वह जागा तब राजा ने पुनः पूछा- 'तुम सो रहे हो अथवा जाग रहे हो?' रोहक-'जाग रहा हूं।' राजा-'क्या सोच रहे हो?' १. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४६, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१८। २. आवश्यक चूर्णि एवं हारिभद्रीया टीका में पहले पत्र का दृष्टान्त है और फिर अजिका-बकरी का। मलयगिरि टीका में पहले अजिका एवं बाद में पत्र का दृष्टान्त है। हमने गाथा के मूलपाठ के आधार पर प्रथम प्रहर में अजिका तथा दूसरे प्रहर में पत्र का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। ३. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४५, ५४६, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१८ । ४. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४६, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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