Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 550
________________ आवश्यक नियुक्ति ४८९ बोला- ‘रानी सदा फूल, केशर आदि सुगंधित द्रव्यों का प्रयोग करती है इसलिए आपको अधोवात का ज्ञान नहीं होता। जब इनका प्रयोग न करे तब पता चलेगा कि अधोवात निकलती है या नहीं।' एक दिन राजा ने पुष्प आदि सुगंधित द्रव्यों को रानी से दूर हटा दिया। राजा को अधोवात का ज्ञान हुआ तब उसे हंसी आ गयी। रानी ने पूछा-'अकारण क्यों हंस रहे हो?' राजा ने जब कारण नहीं बताया तो उसने आग्रह किया। आखिर राजा ने रानी को सारी बात बता दी। रानी ने क्रुद्ध होकर भांड को देशनिकाला दे दिया। भांड जूतों की गठरी बांधकर रानी के सामने उपस्थित हुआ। रानी ने पूछा- 'इतने जूते क्यों ले जा रहे हो?' भांड बोला-'देशान्तरों में जहां तक मैं इन जूतों के सहारे जा सकूँगा, वहां सब जगह देवी के गुणों को प्रकाशित करता रहूंगा।' अपयश के भय से रानी ने निर्वासन का आदेश वापिस ले लिया। यह भांड की औत्पत्तिकी बुद्धि थी। १६४. लाख एक बालक के नाक में लाख की गोली फंस गयी। एक बुद्धिमान् सुनार ने शलाका गर्म करके उससे लाख के गोलक को पिघलाकर बाहर निकाल दिया। बालक स्वस्थ हो गया। १६५. स्तम्भ एक राजा मंत्री की खोज में था। उसने एक युक्ति निकाली। तालाब में एक खंभा गड़वाया और यह घोषणा करवाई कि जो व्यक्ति किनारे पर बैठा-बैठा इस स्तम्भ को रस्सी से बांध देगा, उसे लाख मुद्राओं से पुरस्कृत किया जायेगा। एक व्यक्ति आया और तालाब के किनारे एक कीलक गाड़कर उसमें रस्सी बांध कर तालाब के चारों ओर घूमा। तालाब का मध्यगत स्तम्भ रस्सी के बीच में आ गया। फिर उसने अपने कीलक को उखाड़कर रस्सी खींच ली। खंभा रस्सी से बंध गया। उस व्यक्ति को राजा ने अपना मंत्री बना दिया। १६६. क्षुल्लक एक परिव्राजिका प्रतिज्ञापूर्वक कहती थी कि मैं कुशलकर्मा हूं। पुरुष जो कुछ करता है, वह सब मैं कर सकती हूं। मेरे लिए कोई कार्य अशक्य नहीं है। राजा ने नगर में पटह के द्वारा यह घोषणा करवा दी। भिक्षा के लिए घूमते हुए क्षुल्लक ने यह घोषणा सुनी। क्षुल्लक ने इस घोषणा का प्रतिवाद किया। घोषणा बंद कर राजपुरुष राजकुल में पहुंचे। परिव्राजिका ने क्षुल्लक से पूछा- 'मैं क्या करूं?' क्षुल्लक ने अपनी जननेन्द्रिय दिखाकर कहा- 'तुम भी दिखाओ, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी।' क्षुल्लक ने मूत्र विसर्जित करते हुए उससे पद्म का आलेख किया लेकिन परिव्राजिका ऐसा नहीं कर सकी। परिव्राजिका पराजित १. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२० । २. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२० । ३. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४८, हाटी. १ पृ. २८०, मटी. प. ५२०। ४. इस कथा में नंदी की मलयगिरीया वृत्ति में कुछ परिवर्तन मिलता है। वहां क्षुल्लक ने मूंछ एवं दाढ़ी के केशों का लुञ्चन किया और परिव्राजिका से कहा-'तुम भी ऐसा करो' लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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