Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 559
________________ ४९८ परि. ३: कथाएं निकल आया। यह भूजलवेत्ता की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है।' १८४. अश्व अश्ववणिक् द्वारिका में पहुंचे। वहां सभी राजकुमारों ने स्थूलकाय और बड़े अश्व खरीदे। वासुदेव कृष्ण ने एक दुर्बल किन्तु लक्षणयुक्त अश्व खरीदा। वह कार्यक्षम था अतः अनेक अश्वों में मुख्य बन गया। १८५. गर्दभ एक राजकुमार तरुण अवस्था में राजा बना अतः उसे तरुण अधिक प्रिय थे। उसने अपनी सेना में तरुण लोगों को भरती किया और वृद्ध पुरुषों को छुट्टी दे दी। एक बार वह विजय-यात्रा पर जा रहा था। मार्ग में सघन अटवी आई। राजा और स्कन्धावार के सदस्य प्यास से आकुल-व्याकुल हो गए। पानी प्राप्त करने का उपाय कोई भी तरुण जान नहीं पाया। एक युवक ने राजा से कहा-'किसी अनुभवी स्थविर की बुद्धि से ही हम इस संकट को पार कर सकते हैं अत: आप किसी वृद्ध पुरुष की खोज करें।' राजा ने स्थविर पुरुष की खोज की लेकिन वहां कोई स्थविर नहीं मिला। राजा ने पटह से घोषणा करवाई कि कोई वृद्ध पुरुष हो तो सामने आए। एक पितृभक्त सैनिक प्रच्छन्न रूप से अपने पिता को भी साथ लाया था। तरुण बोला- 'राजन् ! यद्यपि आपने वृद्ध लोगों का निषेध किया था लेकिन पितृभक्ति के कारण मैं अपने पिता को साथ लेकर आया हूं।' राजा ने स्थविर को बुलाया और अटवी में जल-प्राप्ति का उपाय पूछा। वृद्ध बोला- 'राजन् ! गर्दभ चरते हुए जिस भूभाग को सूंघे, वहां खोदने पर आपको पानी मिल जाएगा।' वृद्ध के कथनानुसार पानी मिल गया। सभी व्यक्ति संकट से उबर गए। १८६. लक्षण पारस देश में एक घोड़ों का व्यापारी रहता था। उसने एक अश्वरक्षक को इस शर्त पर रखा कि नियत अवधि के पश्चात् अश्व-रक्षा के स्वरूप उसे दो मनपसंद अश्व दे दिए जाएंगे। उस अश्वरक्षक पर अश्व स्वामी की पुत्री अनुरक्त हो गई। रक्षक ने उससे पूछा- 'दो अच्छे अश्व कौन से हैं?' उसने कहा'निश्चित सोए हुए घोड़े को यदि तेज कर्कश आवाज में उठाया जाए तो भी जो उत्रस्त न हो, वह उत्तम अश्व है।' दूसरी बात- 'अश्वों के समक्ष ढोल बजाओ, खर-खर शब्द करो तो भी उन शब्दों से जो अश्व त्रस्त न हो, वह अच्छा अश्व है।' अश्वरक्षक ने उसी विधि से घोड़ों का परीक्षण किया। वेतन प्रदान करते समय उसने अश्वस्वामी से कहा- 'मुझे अमुक-अमुक दो घोड़े प्रदान करें। अश्वस्वामी ने कहा- 'इन दो घोड़ों के अतिरिक्त तुम सारे घोड़े ले लो।' अश्वरक्षक ने अस्वीकार कर दिया। तब अश्वरक्षक ने अपनी पत्नी से कहा-इस अश्वरक्षक को अपना गृह-जामाता बना लो। अन्यथा वह दोनों श्रेष्ठ अश्वों को ले जाएगा। पत्नी ऐसा नहीं चाहती थी। व्यापारी ने पत्नी को समझाया कि इन १. आवनि. ५८८/१७, आवचू. १ पृ. ५५३, हाटी. १ पृ. २८३, मटी. प. ५२४ । २. आवनि. ५८८/१७, आवचू. १ पृ. ५५३, हाटी. १ पृ. २८३, मटी. प. ५२४ । ३. आवनि. ५८८/१७, आवचू. १ पृ. ५५३, हाटी. १ पृ. २८३, मटी. प. ५२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592