Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 558
________________ आवश्यक नियुक्ति ४९७ गुरु ने पूछा-'आज तुम प्रणाम क्यों नहीं कर रहे हो?' अविनीत शिष्य बोला- 'आपने मुझे अच्छी तरह ज्ञान नहीं दिया। इसका सारा ज्ञान सत्य निकला और मेरा असत्य निकला।' उसने गुरु को सारी बात बताई। गुरु ने अविनीत शिष्य से कहा- 'इसमें मेरा दोष नहीं है। तुमने विनयपूर्वक विद्या ग्रहण नहीं की तथा किसी भी तथ्य पर विमर्श नहीं किया इसलिए तुम्हारी विद्या फलीभूत नहीं हुई। मैं तो केवल शास्त्र का बोध कराता हूं पर विमर्श और परिणमन अपनी-अपनी बुद्धि के आधार पर होता है।' १८१. अर्थशास्त्र (राजनीति) नंदवंश में नंद राजा का शासन चल रहा था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। एक बार उसने अपने मंत्री कल्पक को किसी अपराध के कारण कुंए में डलवा दिया। उसकी मृत्यु की बात सुनकर शत्रु राजाओं ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। नंद राजा ने उसे तत्काल कुंए से निकाला। वह नौका पर आरूढ होकर शत्रु राजा के मंत्रियों के पास संधिवार्ता के लिए गया। उसने उनके सामने इक्षुसमूह के ऊपर और नीचे के भाग को छिन्न कर दिया। फिर बीच में क्या बचेगा यह असम्बद्ध बात हाथ के संकेत से बताकर उनको प्रदक्षिणा देकर लौट आया। शत्रु राजा के मंत्री कल्पक के इस गूढ संकेत को नहीं समझ सके कि तुम्हारा समूल शिरच्छेदन कर आवर्त (कूप) में डाल दूंगा। वे लज्जित होकर राजा के पास जाकर बोले- 'कल्पक अनर्गल प्रलाप करता है। हम उसकी बात नहीं समझ सके।' राजा ने समझ लिया कि कल्पक जीवित है तो उस राज्य को जीतना शक्य नहीं है। १८२. लेख, गणित लाट, कर्नाटक, द्रविड़ आदि अठारह देश की लिपियों को जानने वाली बुद्धि वैनयिकी है। एक उपाध्याय राजपुत्रों को पढ़ाता था। राजकुमारों का मन पढ़ाई में नही लगता था। वे लाक्षा गोलकों से खेलते रहते थे। उपाध्याय ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। उसने लाक्षा गोलकों से खेल-खेल में राजकुमारों को अक्षर और अंकों का ज्ञान करवा दिया। इस विधि से उसने राजकुमारों को गणित और लिपि का ज्ञान करवा दिया। यह उपाध्याय की वैनयिकी बुद्धि थी। १८३. कूप-खनन एक भूजलवेत्ता ने एक व्यक्ति से कहा- 'इतने गहरे में पानी है।' उसके निर्देशानुसार उस व्यक्ति ने खुदाई की। पत्थर की शिला बीच में आने के कारण पानी नहीं निकला। उसने भूजलवेत्ता से कारण पूछा। वह बोला- 'पास वाली भूमि पर एडी से प्रहार करो।' प्रहार के साथ ही आवाज करता हुआ पानी बाहर १. आवनि. ५८८/१७, आवचू. १ पृ. ५५३, हाटी. १ पृ. २८२, २८३, मटी. प. ५२३, ५२४ । २. यह कथा आवश्यक नियुक्ति दीपिका में मिलती है, चूर्णि एवं टीकाओं में केवल संकेत मात्र है। ३. आवनि. ५८८/१७, आवचू. १ पृ. ५५३, हाटी. १ पृ. २८३, मटी. प. ५२४ । ४. आवनि. ५८८/१७, आवचू. १ पृ. ५५३, हाटी. १ पृ. २८३, मटी. प. ५२४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592