Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 546
________________ आवश्यक नियुक्ति ४८५ ककड़ी खरीदने आता वह कहता कि ये तो सारी खाई हुई हैं, इन्हें कैसे खरीदें ? धूर्त्त ने अपनी बात प्रमाणित कर दी कि उसने सारी ककड़ियां खा लीं। ग्रामीण ने भयभीत होकर एक दो यावत् सौ रुपये देने की बात कही लेकिन धूर्त्त संतुष्ट नहीं हुआ। वह ग्रामीण शहर के जुआरियों के पास गया और अपनी समस्या का समाधान मांगा। द्यूतकारों ने उसे बुद्धि दी और उपाय बताया। वह ग्रामीण एक कंदोई की दुकान से एक मोदक लेकर आया और उसे नगरद्वार पर स्थापित करके बोला- 'लड्डू ! नगरद्वार से बाहर आओ, बाहर आओ। वह बाहर नहीं आया, वह शर्त जीत गया। यह जुआरियों की औत्पत्तिकी बुद्धि थी । " १५६. वृक्ष एक रास्ते पर पथिक जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने आम का वृक्ष देखा । वृक्ष पर बंदर बैठे थे अतः वे फल तोड़ने में बाधक बन रहे थे। तब पथिकों ने उपाय सोचा और वे बंदरों पर पत्थर फेंकने लगे। बंदर कुपित होकर आम तोड़कर यात्रियों के ऊपर फेंकने लगे। पथिकों का प्रयोजन सिद्ध हो गया, उन्हें आम मिल गए। १५७. मुद्रा राजगृह नगरी में महाराज प्रसेनजित् का पुत्र श्रेणिक राजलक्षणों से युक्त था। राज्य के लोभ में कोई राजकुमार इसे मार न डाले इसलिए राजा उसके प्रति रूखा व्यवहार करता था। 'मुझे कोई मार न डाले' इस भय से तथा पिता के रूखे व्यवहार से खिन्न होकर वह राज्य को छोड़कर चला गया। कुछेक सहायकों के साथ वह वेन्नातट पर पहुंचा और एक क्षीणवैभव सेठ की दुकान के बाहर जाकर बैठ गया । उसके पुण्यप्रभाव से उस दिन सेठ की दुकान में वर्ष भर में बिकने जितने भांड बिक गए। उसे प्रचुर अर्थलाभ हुआ। कुछ आचार्यों के अनुसार सेठ ने उस रात स्वप्न में रत्नाकर को अपने घर आया हुआ देखा और उसके साथ अपनी कन्या का विवाह होते हुए देखा। सेठ ने सोचा कि इसकी कृपा से महती विभूति मिलेगी। श्रेणिक दुकान पर बैठने लगा । उसकी विशिष्ट आकृति देखकर सेठ ने सोचा- 'यही रत्नाकर होगा ।' उसके प्रभाव से उसने म्लेच्छ व्यक्तियों से अनर्घ्य रत्न प्राप्त किए। अत्यधिक लाभ होता देख सेठ ने उससे पूछा'तुम किसके अतिथि हो ?' श्रेणिक बोला- 'अभी तो मैं आपका अतिथि हूं।' तब सेठ उसे घर कुछ समय बाद सेठ ने उसके साथ अपनी पुत्री नंदा का विवाह कर दिया । वह वहीं रहने लगा । कालान्तर में नंदा स्वप्न में सफेद हाथी देखकर गर्भवती हुई। गया। इधर महाराज प्रसेनजित् ने श्रेणिक को लाने के लिए एक ऊंटनी भेजी और कहलवाया कि शीघ्र आ जाओ। वह दूत वहां पहुंचा । श्रेणिक ने सेठ से कहा - 'हम राजगृह के प्रसिद्ध गोपाल पांडुरकुड्य हैं। यदि कोई प्रयोजन हो तो वहां आ जाना।' श्रेणिक चला गया। देवलोक से च्युत पुण्यशाली गर्भ के प्रभाव से नंदा के दोहद उत्पन्न हुआ कि वह श्रेष्ठ हाथी पर चढ़कर सब प्राणियों को अभय दे। १. आवनि. ५८८ / १४, आवचू. १ पृ. ५४६, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१९ । २. आवनि. ५८८/१४, आवचू. १ पृ. ५४६, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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