Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक निर्युक्ति
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से जा रहे थे । उनको देखकर धर्मरुचि ने पूछा- 'प्रभो! क्या आपके अनाकुट्टि नहीं है जो कि आप जंगल की ओर जा रहे हैं ?' साधुओं ने कहा- 'हमारे यावज्जीवन अनाकुट्टि है। यह सुनकर वह संभ्रान्त होकर सोचने बैठा । मुनियों का संघ आगे चला गया। सोचते-सोचते धर्मरुचि को जातिस्मृति ज्ञान की उपलब्धि हुई और वह प्रत्येकबुद्ध हो गया।
'परिज्ञा विषयक इलापुत्र' की कथा हेतु देखे - कथा संख्या ११० । ११८. तेतलिपुत्र
तलिपुर नगर में कनकरथ नामक राजा राज्य करता था । उसकी महारानी का नाम पद्मावती था । राजा अत्यन्त राज्य- -लोलुप था। जब-जब उसके संतान उत्पन्न होती, वह उनको विकृत अंग वाला कर देता, जिससे बड़े होकर वे राज्य की मांग न कर सकें।
राजा का अमात्य तेतलिपुत्र साम, दाम आदि नीतियों में निपुण था । उसी नगर में एक स्वर्णकार था, जिसकी पत्नी का नाम भद्रा था। उस स्वर्णकार की पुत्री का नाम पोट्टिला था, जो अत्यन्त रूपवती थी । एक बार वह अपनी छत पर सोने की गेंद से खेल रही थी । तेतलिपुत्र उसे देखकर आसक्त हो गया और शादी के लिए उसका हाथ मांगा। स्वर्णकार ने अपनी पुत्री की शादी तेतलिपुत्र के साथ कर दी।
एक दिन रानी पद्मावती ने अमात्य को बुलाकर कहा - 'पुत्र पैदा होते ही भोगलिप्सा के कारण राजा उनको अंगविहीन कर देता है अतः एक पुत्र को जैसे-तैसे बचाओ, जिससे वह तुम्हारा और मेरादोनों का सहारा बन सके। मेरे उदर में अभी पुत्र है, हम उसका एकान्त में संरक्षण करेंगे।' अमात्य ने उसकी बात स्वीकार कर ली। पोट्टिला ने भी उसके साथ ही गर्भ धारण किया। कालान्तर में रानी पद्मावती ने पुत्र का प्रसव किया और पोट्टिला ने मृत दारिका को जन्म दिया। पद्मावती ने मंत्री को गुप्त रूप से बुलाकर अपना पुत्र उसे दे दिया और मृत दारिका अपने पास रख ली। राजकुमार तेतलिपुत्र के यहां बढ़ने लगा। उसने अनेक कलाएं सीख लीं।
एक बार तेतलिपुत्र पोट्टिला से नाराज हो गया। वह उसको अप्रीतिकर लगने लगी । तेतलिपुत्र उसका नाम भी सुनना नहीं चाहता था। पोट्टिला घबरा गई। एक बार कुछ साध्वियां उसके घर आईं। उसने एक साध्वी से पूछा- 'पहले मैं अपने पति के लिए बहुत प्रिय थी लेकिन अब वह मेरी ओर आंख उठाकर भी नहीं देखना चाहता अतः कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे मैं पुनः अपने पति के लिए प्रिय हो जाऊं ।' साध्वी ने कहा- 'हम ऐसी बात सुनना नहीं चाहतीं हम तो तुम्हें केवलिप्रज्ञप्त धर्म का उपदेश दे सकती हैं।' साध्वी से धर्म - वार्ता सुनकर वह विरक्त हो गयी। उसने श्रावक - व्रत स्वीकार कर लिए। एक दिन उसके मन में प्रव्रजित होने का विकल्प उठा । उसने तेतलिपुत्र से कहा - 'आपकी आज्ञा हो तो मैं प्रव्रजित होना चाहती हूं।' तेतलिपुत्र बोला- 'समय आने पर तुम मुझे संबोध दो तो प्रव्रजित होने की आज्ञा दे सकता हूं।' पोट्टला ने स्वीकृति दे दी । यथोचित श्रामण्य का पालन कर वह देवलोक में उत्पन्न हुई । कालान्तर में राजा दिवंगत हो गया । तेतलिपुत्र ने राजकुमार कनकध्वज को पौरजनों के समक्ष प्रस्तुत किया और नागरिकों ने उसका राज्याभिषेक कर दिया। माता पद्मावती ने कुमार कनकध्वज के सामने रहस्य का उद्घाटन करते हुए १. आवनि. ५६५ / १२, आवचू. १ पृ. ४९८, हाटी. १ पृ. २४८, २४९, मटी. प. ४८०, ४८१ ।
२. आवनि. ५६५ / १३ ।
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