Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
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शय्या बिछाने वाला था, उसकी शय्या पर सोने वाला यदि चाहता कि वह एक प्रहर के बाद जाग जाए तो वैसा ही होता था। अन्यथा दूसरे, तीसरे और चौथे प्रहर में भी उसकी नींद नहीं टूटती थी वह सोता ही रह जाता था। चौथे व्यक्ति ने ऐसा श्रीगह बनाया. उसमें प्रवेश करने वाले को कछ भी दिखाई नहीं देता था। इन चारों पुरुषों के ये चार विशिष्ट गुण थे। उज्जयिनी का वह राजा अपुत्र था। उसे कामभोगों से विरक्ति हो गई। वह प्रव्रज्या ग्रहण करने का उपाय सोच रहा था। एक बार पाटलिपुत्र के राजा जितशत्रु ने उज्जयिनी पर आक्रमण कर दिया। इसी समय उज्जयिनी के राजा के पूर्वकर्मों की परिणति के कारण सघन शूल रोग उत्पन्न हुआ। उसने अनशन कर मृत्यु का वरण कर लिया। मरकर वह देवरूप में उत्पन्न हुआ। नागरिक एकत्रित हुए और राज्य की बागडोर जितशत्रु राजा को सौंप दी। उसने विशिष्ट गुण वाले चारों व्यक्तियों को बुलाकर पूछा- 'तुम क्या करते हो?' भांडागारिक राजा को श्रीगृह में ले गया। राजा को भंडार में कुछ भी दिखाई नहीं दिया तब उसने दूसरे द्वार से खजाना दिखाया। शय्यापालक ने ऐसी शय्या की रचना की, जिससे राजा मुहूर्त-मुहूर्त में जागने लगा। रसोइये ने ऐसा भोजन बनाया कि वह बार-बार भोजन करना चाहता। तैलमर्दक ने राजा के शरीर का तैलमर्दन किया पर एक पैर से तैल नहीं निकाला। उसने कहा- 'जो मेरे समान हो, वह इस पैर का तैल निकाले।' वे चारों विशिष्ट पुरुष विरक्त होकर प्रव्रजित हो गए। राजा एक पैर में समाए तेल के कारण दग्ध होकर कृष्णवर्ण का हो गया। रंग परिवर्तन होने के कारण जितशत्रु का नाम काकवर्ण हो गया।
एक बार सोपारक नगर में दुर्भिक्ष पड़ा। रथकार का पुत्र कोक्कास उज्जयिनी चला गया। उसने सोचा- 'राजा को मेरे आगमन की बात कैसे बताऊं?' उसे एक उपाय सूझा। उसने यंत्रमय कबूतरों का निर्माण किया। वे कबूतर प्रतिदिन राजा के अन्न भंडार से गंधशालि का अपहरण करने लगे। भाण्डागारिक ने राजा से शिकायत की। खोजी व्यक्तियों ने यथार्थ जान लिया। वे कोक्कास को राजा के पास ले आए। राजा ने उसकी योग्यता को जानकर उसे अपने ही राज्य में आजीविका दे दी। कुछ समय पश्चात् कोक्कास
लका प्रयोग से उड़ने वाले आकाशगामी गरुड़ का निर्माण किया। राजा अपनी पटरानी के साथ कोक्कास को साथ लेकर गरुड़ पर बैठकर आकाशमार्ग में विहरण करने लगा। जो अधीनस्थ व्यक्ति नत नहीं होता, उसे राजा कहता- 'मैं आकाशमार्ग से आकर मार दूंगा।' अब वे सब राजा उसकी आज्ञा मानने लगे। एक दिन पटरानी से अन्य रानियों ने पूछकर यह जान लिया कि अमुक कीलिका के प्रयोग से गरुड़ स्थान पर लौट आता है। एक दिन उन रानियों में से एक ने ईर्ष्यावश निवर्तन करने वाली कीलिका को चुरा लिया। राजा गरुड़ पर प्रस्थित हुआ। निवर्तनकाल में कोक्कास को ज्ञात हुआ कि निवर्तन-कीलिका नहीं है। गरुड़ निवर्तित नहीं हो रहा था। वह बहुत तेज चलने लगा। कलिंग देश में उसके पंख टूट गए। वह नीचे गिर पड़ा। उसका संधान करने के लिए उचित औजार लेने कोक्कास नगर में गया। वहां एक रथकार के घर पहुंचा। उस समय रथकार रथ के निर्माण में व्यस्त था। वह एक चक्र बना चुका था। दूसरे चक्र का निर्माण हो रहा था इतने में ही कोक्कास ने उपकरणों की मांग की। रथकार बोला- 'मैं घर से उपकरण लेकर आता हूं क्योंकि तुम्हें जो उपकरण चाहिए, वे राजकुल में नहीं मिलते हैं।' वह घर की ओर चला गया। पीछे से कोक्कास ने उस चक्र का संधान कर दिया। ऊंचा उठाने पर वह चलता और आस्फोटित करने पर वह रुक जाता और पीछे चलता। स्थित होने पर भी वह नीचे नहीं गिरता था। रथकार उपकरण लेकर आया। उसने
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