Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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परि. ३ : कथाएं
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दिलाने हेतु एक अश्व लाया गया। स्त्री रत्न ने उस अश्व का मुंह से लेकर कटि तक स्पर्श किया। वह अश्व पिघल कर शुक्रक्षय के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गया। फिर भी पुत्र को विश्वास नहीं हुआ तब लोहमय पुरुष का निर्माण किया गया। स्त्रीरत्न ने उस लोहमय पुरुष का आलिंगन किया । वह तत्काल पिघलकर विलीन हो गया ।"
९४. आचार्य वज्र का इतिवृत्त
व्रजस्वामी पूर्वभव में वैश्रमण इन्द्र के सामानिक देव थे। भगवान् वर्द्धमान स्वामी पृष्ठचंपा नगरी के सुभूमिभाग उद्यान में समवसृत हुए। उस नगरी का राजा शाल तथा युवराज महाशाल था । उनकी भगिनी यशोमती के पति का नाम पिठर और पुत्र का नाम गागली था। शाल भगवान् के समवसरण में गया। धर्म सुनकर वह बोला- 'भगवन् ! मैं युवराज महाशाल का राज्याभिषेक कर आपके पास प्रव्रज्या ग्रहण करूंगा।' वह अपने राजप्रासाद में आकर महाशाल से बोला- 'तुम राजा बन जाओ। मैं प्रव्रज्या ग्रहण करूंगा।' महाशाल ने कहा- 'राजन् ! जैसे आप यहां हमारे मेढ़ीभूत हैं, वैसे ही प्रव्रजित होने पर भी होंगे। मैं भी आपके साथ प्रव्रजित होना चाहता हूं।' तब कांपिल्यपुर से गागली को बुलाकर उसका राज्याभिषेक कर दिया गया। उसकी माता यशोमती कांपिल्यपुर में ही थी। उसके पिता पिठर भी वहीं थे। राजा बनते ही गागली ने उनको पृष्ठचंपा नगरी में बुला लिया। उसने दो दीक्षार्थियों के लिए हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली दो शिविकाएं बनवाईं। वे दोनों प्रव्रजित हो गए। भगिनी यशोमती भी श्रमणोपासिका बन गई। उन दोनों ने मुनि बनकर ग्यारह अंगों का अध्ययन कर लिया।
एक बार भगवान् राजगृह में समवसृत हुए। वहां से वे चंपा नगरी की ओर जाने लगे। तब शाल और महाशाल- दोनों मुनियों ने भगवान् से पूछा- 'हम पृष्ठचंपा नगरी जाना चाहते हैं। वहां कोई सम्यक्त्वलाभ कर सकता है अथवा कोई दीक्षित हो सकता है।' भगवान् ने जान लिया कि वहां कुछ लोग प्रतिबुद्ध होंगे। भगवान् ने उनके साथ गौतमस्वामी को भेजा। भगवान् चंपा नगरी में पधारे। गौतमस्वामी भी पृष्ठचंपा गए। समवसरण में गागली, पिठर और यशोमती ने दर्शन किए। उनमें परम वैराग्य का उदय हुआ । धर्म सुनकर गागली अपने पुत्र का राज्याभिषेक कर माता-पिता के साथ दीक्षित हो गया । गौतमस्वामी उनको साथ ले चंपा नगरी की ओर प्रस्थित हुए। उनको चंपा नगरी की ओर जाते देखकर शाल- महाशाल को बहुत हर्ष हुआ। उन्होंने सोचा, 'संसार से इनका उद्धार हो गया। तदनन्तर शुभ अध्यवसाय में प्रवर्तमान उन दोनों को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई।' इधर गौतमस्वामी के साथ जाते हुए तीनों ने सोचा- 'शाल - महाशाल ने हमें राज्य दिया। फिर हमें धर्म में स्थापित कर संसार से मुक्त होने का अवसर दिया।' इस प्रकार के चिन्तन
शुभ अध्यवसायों में प्रवर्तन करते हुए तीनों को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई । केवली अवस्था में वे चंपा नगरी पहुंचे। भगवान् को प्रदक्षिणा और तीर्थ को नमस्कार कर वे केवली - परिषद् की ओर गए । गौतमस्वामी भी भगवान् को प्रदक्षिणा दे उनके चरणों में वंदना करके उठे और तीनों से कहा- 'कहां जा रहे हो ? आओ, भगवान् को वंदना करो।' भगवान् बोले- 'गौतम ! केवलियों की आशातना मत करो।' तब गौतमस्वामी ने मुड़कर उनसे क्षमायाचना की। उनका संवेग बढ़ा। उन्होंने सोचा - 'बस, मैं अकेला ही सिद्ध नहीं हो सकूंगा।'
१. आवनि. ४३८, आवचू. १ पृ. ३६६, हाटी. १ पृ. १८३, मटी. प. ३५९, ३६० ।
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