Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
३७९ सागर को तैर जाना है। सूर्य का दर्शन यह बताता है कि आप शीघ्र ही केवलज्ञान प्राप्त कर लेंगे। आंतों से मानुषोत्तर पर्वत को वेष्टित करने का अर्थ है-संपूर्ण त्रिभुवन में आपका यश, कीर्ति और प्रताप फैलेगा। मंदरपर्वत पर आरूढ होने का अर्थ है कि आप सिंहासन पर आरूढ होकर मनुष्य, देव और असुरों की परिषद् में धर्म की प्रज्ञापना करेंगे। दो मालाएं देखने का अर्थ मैं नहीं समझ सका।' स्वामी बोले-'हे उत्पल! तुम इसका अर्थ नहीं जानते। मैं इसका फल बताता हूं-मेरे द्वारा दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा होगी-सागार धर्म और अनगारधर्म।' समाधान होने पर उत्पल वंदना कर चला गया। वहां भगवान् अर्द्धमास तक रहे। यह पहला वर्षावास था। ६२. सिद्धार्थ और अच्छंदक
___ शरद् ऋतु में भगवान् वहां से विहार कर मोराक सन्निवेश के बाहर एक उद्यान में ठहरे। वहां अच्छंदक नामक तपस्वी रहते थे। वहां एक अच्छंदक जादू-टोने से जीवन-यापन करता था। सिद्धार्थ यह देखकर दु:खी था कि वहां भगवान् की पूजा नहीं हो रही है। उसने उधर से जाते हुए एक ग्राम-प्रमुख को बुलाकर भगवान् के बारे में अनेक बातें बताईं।
वह ग्राम-प्रमुख गांव में गया और उसने अपने मित्रों तथा परिचितों को सारी बात बताई। सारे गांव में यह बात प्रसारित हो गई कि उद्यान में ठहरे हुए देवार्य अतीत, अनागत और वर्तमान-तीनों काल की बात जानते हैं। एक-दूसरे से यह बात सर्वत्र फैल गई। लोग आए और देवार्य की महिमा-पूजा करने लगे। लोग उनको घेरे रहते। लोगों ने कहा-यहां अच्छंदक नामक व्यक्ति है, जो भूत व भविष्य का जानकार है। सिद्धार्थ ने कहा-'यह अच्छंदक कुछ नहीं जानता।' तब लोगों ने जाकर उससे कहा- 'तुम कुछ नहीं जानते, देवार्य जानते हैं।' वह अच्छंदक अपने आपको लोगों के मध्य प्रतिष्ठापित करने के लिए बोला'चलें, यदि वह मेरे प्रश्न का उत्तर दे देगा तो मैं मानूंगा कि वह जानता है।' वह लोगों को साथ ले देवार्य के पास गया और सामने बैठ कर एक तिनका हाथ में लेकर बोला- 'यह तिनका टूटेगा या नहीं?' उसने सोचा-'यदि देवार्य कहेंगे कि यह तिनका नहीं टूटेगा तो मैं तत्काल उसे तोड़ कर दिखा दूंगा और यदि कहेंगे कि यह तिनका टूटेगा तो मैं उसे नहीं तोडूंगा।' तब सिद्धार्थ ने कहा- 'यह तिनका नहीं टूटेगा।' अच्छंदक ने उसे तोड़ने का प्रयत्न किया। शक्र ने उपयोग से सारी बात जान ली और वज्र फेंका। अच्छंदक की दसों अंगुलियां भूमि पर आ गिरी। तब लोगों ने उसको फटकारा। सिद्धार्थ अच्छंदक से रुष्ट हो गया। सिद्धार्थ ने लोगों से कहा- 'अरे सुनो। यह अच्छंदक चोर है।' लोगों ने पूछा- 'बताओ, इसने क्या चुराया है?' तब सिद्धार्थ बोला- 'क्या यहां वीरघोष नाम का कर्मकर है?' वीरघोष सामने आया और सिद्धार्थ के चरणों में गिर कर बोला- 'मैं वीरघोष हूं।' सिद्धार्थ ने पूछा- क्या अमुक समय में तुम्हारा दसपल वजन वाला करोटक गुम हो गया था?' उसने कहा- 'हां, गुम हो गया।' सिद्धार्थ बोला-'इस अच्छंदक ने उसे चुरा लिया था।' वीरघोष बोला-'अब वह करोटक कहां है?' सिद्धार्थ ने कहा-'इस अच्छंदक के घर के आगे खजूर का एक वृक्ष है। उसके पूर्व दिग्भाग में एक हाथ की दूरी पर गड्ढा खोदकर इसने वहां
१. आवनि. २७९, आवचू. १ पृ. २७४, २७५, हाटी. १ पृ. १२८, १२९, मटी. प. २७०, २७१ ।
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