Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति ५२३. चारों सामायिक तीनों योगों में तथा साकार और अनाकार-इन दोनों उपयोगों में होती है। औदारिक शरीर में चारों सामायिक तथा वैक्रिय शरीर में सम्यक्त्वसामायिक तथा श्रुतसामायिक की भजना है। ५२४. सभी संस्थानों तथा सभी संहननों में चारों सामायिकों की प्रतिपत्ति होती है। उत्कृष्ट तथा जघन्य शरीर प्रमाण का वर्जन कर अन्य सभी शरीर-मानों में मनुष्य के चारों सामायिकों की प्रतिपत्ति होती है। ५२५. सभी लेश्याओं में सम्यक्त्वसामायिक तथा श्रुतसामायिक तथा तेजोलेश्या आदि तीन शुद्ध लेश्याओं में चारित्रसामायिक की प्रतिपत्ति होती है। इन सामायिकों का पूर्वप्रतिपन्नक किसी भी लेश्या में हो सकता है। ५२६. वर्धमान तथा अवस्थित परिणाम वालों में चारों सामायिकों में से किसी एक सामायिक की प्रतिपत्ति होती है। हीयमान परिणामों में किसी भी प्रकार की सामायिक की प्रतिपत्ति नहीं होती। ५२७. सात-असात रूप दोनों वेदनाओं में चारों सामायिकों में से किसी एक की प्रतिपत्ति होती है। इसी प्रकार समुद्घात आदि से असमवहत प्राणी के चारों में से किसी एक की प्राप्ति होती है। पूर्वप्रतिपन्नक की अपेक्षा इसमें भजना है। ५२८. द्रव्य और भाव से कर्मों का निर्वेष्टन करता हुआ जीव चारों में से किसी एक सामायिक की प्राप्ति करता है। नरक से अनुवर्तन करने वाला प्रथम दो सामायिकों को प्राप्त करता है तथा उद्वर्तन करने वाला कभी चार और कभी तीन सामायिकों की प्राप्ति करता है। ५२९. तिर्यञ्चों में अनुवर्तन करने वाला प्रथम तीन सामायिकों की तथा उद्वर्तन करने वाला चारों सामायिकों की प्रतिपत्ति करता है। मनुष्यों में अनुवर्तन करने वाला चारों की तथा उद्वर्तन करने वाला तीन या दो प्रकार की सामायिकों को प्राप्त करता है। ५३०. देवताओं में अनुवर्तन करने वाला दो प्रकार की सामायिकों तथा उद्वर्तन करने वाला चारों प्रकार की सामायिकों को प्राप्त करता है। उद्वर्तमानक सभी देव किसी सामायिक की प्रतिपत्ति नहीं करते।। ५३१. तदावरणीय कर्म की निर्जरा करता हुआ जीव चारों में से किसी एक सामायिक को प्राप्त करता है। पूर्वप्रतिपन्नक की अपेक्षा से जीव आश्रवक अथवा निराश्रवक हो सकता है।
१. जघन्य अवगाहना वाले गर्भज तिर्यञ्च और मनुष्य किसी भी सामायिक की प्राप्ति नहीं कर सकते। पूर्वप्रतिपन्नक की
अपेक्षा उनके प्रथम दो सामायिक हो सकती हैं। उत्कृष्ट अवगाहना वालों में भी पूर्वप्रतिपन्नक की अपेक्षा प्रथम दो
सामायिक की प्राप्ति है (विभामहे गा. २७३९)। २. समवहत पूर्वप्रतिपन्नक में दो अथवा तीन सामायिक होती हैं। ३. द्रव्य निर्वेष्टन-कर्म प्रदेशों का विसंघात करना।
भाव निर्वेष्टन-क्रोध आदि कषायों की हानि। (आवहाटी. १ पृ. २२६) ४. आवहाटी. १ पृ. २२७ ; णीसवमाणो-नि:श्रावयन्-यस्मात् सामायिकं प्रतिपद्यते तदावरणं कर्म निर्जरयन्नित्यर्थ:
अर्थात् जिनसे सामायिक की प्राप्ति होती हैं, उन आवारक कर्मों की निर्जरा करता हुआ।
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