Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
१८१ १३५/१०. जितना आयुष्य कुलकरों का था उतना ही आयुष्य उनकी पत्नियों का तथा उनके हाथियों का
था।
१३५/११. जिस कुलकर का जितना आयुष्य होता है, उसके दस समान विभाजन कर (प्रथम और अन्तिम को छोड़कर) मध्य के आठ भाग का तीसरा भाग कुलकर-काल जानना चाहिए। १३५/१२. कुलकर की आयुष्य के दस समान भागों में पहला भाग कुमार-काल तथा दसवां भाग वृद्धत्व का होता है। उनमें राग-द्वेष प्रतनु होता है अत: सब कुलकर मरकर देवरूप में उत्पन्न होते हैं। १३५/१३. विमलवाहन और चक्षुष्मान्–ये दो कुलकर सुपर्णकुमार देवरूप में, यशस्वी और अभिचन्द्रये दो उदधिकुमार देव रूप में, प्रसेनजित् और मरुदेव-द्वीपकुमार देव रूप में तथा नाभि नागकुमार देव रूप में उत्पन्न हुए। १३५/१४. कुलकरों के हाथी तथा प्रथम छह कुलकरों की छह पत्नियां नागकुमार देवलोक में उत्पन्न हुईं। अंतिम कुलकर नाभि की पत्नी मरुदेवी सिद्ध गति को प्राप्त हुई। १३५/१५. कुलकर तीन नीतियों का प्रवर्तन करते हैं-हाकार, माकार और धिक्कार। उनका विशेष विवरण यथाक्रम तथा परिपाटी से कहूंगा। १३५/१६. पहले और दूसरे कुलकर ने हाकार नीति का, तीसरे और चौथे कुलकर ने माकार नीति का प्रवर्तन किया। इसमें अभिनव बात यह है कि वे स्वल्प अपराध में प्रथम दंडनीति (हाकार) का तथा बड़े अपराध में द्वितीय दंडनीति (माकार) का प्रयोग करते थे। पांचवें, छठे तथा सातवें कुलकर लघु अपराध में 'हाकार', मध्यम अपराध में 'माकार' तथा उत्कृष्ट अपराध में ‘धिक्कार'-दंडनीतियों का प्रयोग करते थे। १३५/१७. भरत चक्रवर्ती ने माणवक निधि से शेष दंडनीतियों का प्रवर्तन किया। ऋषभ ने 'गृहवास में असंस्कृत आहार अर्थात् स्वभाव निष्पन्न आहार ही लिया था। १३६. उनकी पत्नी मरुदेवा से उत्तराषाढा नक्षत्र में ऋषभ का जन्म हुआ। वे पूर्वभव में वज्रनाभ (वैरनाभ) नाम के राजा थे। (तीर्थंकर नामगोत्र का बंध कर प्रव्रज्या ग्रहण कर) वे मरकर सर्वार्थ सिद्धि विमान में उत्पन्न हुए और वहां से च्युत होकर ऋषभ के रूप में उनकी उत्पत्ति हुई। १३६/१. धन सार्थवाह, घोषणा, यतिगमन, अटवी में वर्षा प्रारम्भ होने से वहीं अवस्थिति, वर्षावास बहुत बीत जाने पर धन को चिन्ता, तब मुनि को घृतदान।
१. आवहाटी १ पृ. ७६ ; देवेन्द्रादेशाद्देवाः देवकुरूत्तरकुरुक्षेत्रयोः स्वादूनि फलानि क्षीरोदाच्चोदकमुपनीतवन्त:- देवेन्द्र के
आदेश से देवता ऋषभ के लिए देवकुरु-उत्तरकुरु से स्वादिष्ट फल तथा क्षीर समुद्र से पानी लाते थे। २. देखें परि. ३ कथाएं।
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