Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक निर्युक्त ३२४. भगवान् तोसलि गांव के बाहर प्रतिमा में स्थित हो गए। संगम ने क्षुल्लक का रूप बनाकर गांव में सेंध लगाई। पकड़ने पर उसने कहा- 'वध्य मैं नहीं हूं, मुझे तो मेरे आचार्य ने भेजा है।' उसे छोड़ दिया । भगवान् को वध्य मानकर वधस्थान में ले जाने पर महाभूतिल नामक ऐन्द्रजालिक ने उन्हें मुक्त कराया। ३२५. भगवान् मोसलि गांव में गए। संगम वहां भी छोटे बालक का रूप बनाकर सेंध लगाने का स्थान देखने लगा। उसके कहने पर लोगों ने भगवान् को पकड़ा। पिता के मित्र सुमागध नामक राष्ट्रिक ने भगवान् को मुक्त कराया । तोसलि गांव में भगवान् को पकड़कर रस्सी से बांधकर लटकाया । रज्जू सात बार टूटा । तोसलि क्षत्रिय ने भगवान् को छोड़ दिया ।
३२६-३२८. सिद्धार्थपुर में भगवान् को चोर समझकर पकड़ा। वहां अश्ववणिक् कौशिक ने भगवान् को मुक्त कराया। भगवान् व्रजग्राम में भिक्षा के लिए निकले। देव ने सर्वत्र अनेषणीय कर दिया। दूसरे दिन देव उपशांत होकर बोला- 'आप जहां चाहें, वहां घूमें। अब मैं कोई उपसर्ग नहीं दूंगा।' भगवान् बोले‘किसी के कहने की आवश्यकता नहीं है। मैं मेरी इच्छा से जाता हूं, आता हूं।' वहां पर वत्सपालिका स्थविरा ने भगवान् को बासी दूध का दान दिया। वसुधारा की वृष्टि हुई। इस प्रकार संगम देव ने अनुबद्ध होकर छह मास तक भगवान् को उपसर्ग दिए । व्रजग्राम में भगवान् को शान्त देख, उनकी वंदना - स्तुति कर
वह चला गया।
३२९. इन्द्र द्वारा निष्कासित सागरोपम शेष स्थिति वाला वह महर्द्धिक देव संगम, अपनी देवियों के साथ मंदर पर्वत की चूलिका के शिखर पर आ ठहरा ।
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३३०. आलभिका नगरी में देवेन्द्र हरि द्वारा प्रियपृच्छा । इन्द्र ने महावीर द्वारा उपसर्गों को जीतने एवं कुछ उपसर्गों के अवशेष रहने की बात कही। श्वेतविका नगरी में इन्द्र हरिस्सह द्वारा प्रियपृच्छा, श्रावस्ती में लोगों द्वारा स्कन्दक प्रतिमा की पूजा, इन्द्र का आगमन ।
३३०/१. भगवान् आलभिका नगरी में गए। वहां विद्युत्कुमारेन्द्र हरि जिनेश्वर देव की भक्ति से वंदना कर प्रियपृच्छा - सुखसाता पूछकर बोला- 'आपने प्रायः उपसर्गों को जीत लिया है अब कुछ अवशिष्ट रहे हैं । '
३३०/२. श्वेतविका नगरी में हरिस्सह देवेन्द्र ने भगवान् से प्रियपृच्छा की। भगवान् श्रावस्ती के बाह्य भाग में प्रतिमा में स्थित हो गए। वहां स्कंदक प्रतिमा की पूजा हो रही थी। भगवान् की उपेक्षा देखकर इन्द्र आया और प्रतिमा में प्रविष्ट होकर भगवान् को वंदना करने लगा। लोग भी भगवान् को वंदना करने लगे।
३३१. कौशाम्बी में चन्द्र और सूर्य ने अपने-अपने मूल विमानों सहित आकर भगवान् की महिमा की । वाराणसी में शक्र और राजगृह में ईशानेन्द्र ने सुखपृच्छा की। मिथिला में महाराज जनक ने अर्चा की तथा धरणेन्द्र ने सुखपृच्छा की।
३३२, ३३३. वैशाली में भूतानन्द ने सुखपृच्छा की। वहां से सुंसुमारपुर में चमर का उत्पात हुआ । भोगपुरी
१,२. देखें परि. ३ कथाएं ।
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