Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
२२१ ३९३. जरा और मरण से विप्रमुक्त जिनेश्वर देव द्वारा मंडित का संशय मिट जाने पर वह अपने ३५० शिष्यों के साथ प्रव्रजित होकर श्रमण बन गया। ३९४. उन सबको प्रवजित सुनकर मौर्य जिनेश्वर देव के पास आया। उसने सोचा-मैं जाऊं, वंदना करूं
और वंदना कर भगवान् की पर्युपासना करूं। ३९५,३९६. जन्म, जरा और मृत्यु से विप्रमुक्त, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जिनेश्वर देव ने मौर्य को नाम और गोत्र से संबोधित कर कहा- 'मौर्य! तुम्हारे मन में यह संशय है कि देवता हैं या नहीं? तुम वेद-पदों के अर्थ को नहीं जानते। सुनो, उनका अर्थ यह है।' ३९७. जरा और मरण से विप्रमुक्त जिनेश्वर देव द्वारा मौर्य का संशय मिट जाने पर वह अपने ३५० शिष्यों के साथ प्रव्रजित होकर श्रमण बन गया। ३९८. उन सबको प्रव्रजित सुनकर अकंपित जिनेश्वर देव के पास आया। उसने सोचा-मैं जाऊं, वंदना करूं और वंदना कर भगवान् की पर्युपासना करूं। ३९९,४००. जन्म, जरा और मृत्यु से विप्रमुक्त, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जिनेश्वर देव ने अकंपित को नाम और गोत्र से संबोधित कर कहा- 'अकंपित ! तुम्हारे मन में यह संशय है कि नारक हैं अथवा नहीं? तुम वेदपदों का अर्थ नहीं जानते। सुनो, उनका अर्थ यह है।' ४०१. जरा और मरण से विप्रमुक्त, जिनेश्वर देव द्वारा अकंपित का संशय मिट जाने पर वह अपने ३०० शिष्यों के साथ प्रव्रजित होकर श्रमण बन गया। ४०२. उन सबको प्रव्रजित सुनकर अचलभ्राता जिनेश्वर देव के पास आया। उसने सोचा-मैं जाऊं, वंदना करूं और वंदना कर भगवान् की पर्युपासना करूं। ४०३,४०४. जन्म, जरा और मृत्यु से विप्रमुक्त, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जिनेश्वर देव ने अचलभ्राता को नाम
और गोत्र से संबोधित कर कहा-'अचलभ्राता! तुम्हारे मन में यह संशय है कि पुण्य-पाप हैं अथवा नहीं? तुम वेद-पदों के अर्थ को नहीं जानते। सुनो, उनका अर्थ यह है।' ४०५. जरा और मरण से विप्रमुक्त जिनेश्वर देव द्वारा अचलभ्राता का संशय मिट जाने पर वह अपने तीन सौ शिष्यों के साथ प्रवजित होकर श्रमण बन गया। ४०६. उन सबको प्रव्रजित सुनकर मेतार्य जिनेश्वर देव के पास आया। उसने सोचा-मैं जाऊं, वंदना करूं और वंदना कर भगवान् की पर्युपासना करूं। ४०७,४०८. जन्म, जरा और मृत्यु से विप्रमुक्त, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जिनेश्वर देव ने मेतार्य को नाम और गोत्र से संबोधित कर कहा- 'मेतार्य! तुम्हारे मन में यह संशय है कि परलोक है अथवा नहीं? तुम वेदपदों के अर्थ को नहीं जानते। सुनो, उनका अर्थ यह है।' ४०९. जरा और मरण से विप्रमुक्त जिनेश्वर देव द्वारा मेतार्य का संशय मिट जाने पर वह अपने ३०० शिष्यों
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