Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
कृतवर्मा
१४.
शूर
अर
देवी
१९८
आवश्यक नियुक्ति तीर्थंकर जन्मभूमि
माता
पिता १२. वासुपूज्य चंपा
जया
वासुपूज्य विमल कांपिल्य
श्यामा अनन्त अयोध्या
सुयशा सिंहसेन रत्नपुर
सुव्रता
भानु शांति हस्तिनापुर
अचिरा विश्वसेन कुन्थु हस्तिनापुर
श्री हस्तिनापुर
सुदर्शन मल्लि मिथिला
प्रभावती कुंभ मुनिसुव्रत राजगृह
पद्मावती सुमित्र २१. नमि मिथिला
वप्रा
विजय २२. नेमि शौर्यनगरी
शिवा
समुद्रविजय पार्श्व वाराणसी
वामा
अश्वसेन २४. महावीर कुंडपुर
त्रिशला
सिद्धार्थ २३६/१५. सभी तीर्थंकर जरा-मरण के बंधन से विप्रमुक्त होकर शाश्वत सुखमय तथा निराबाध मोक्ष गति को प्राप्त हुए। २३६/१६-१८. सभी चक्रवर्ती भरतवर्ष के छह खंडों के स्वामी होते हैं। उनका वर्ण निर्मल कनक की प्रभा जैसा होता है। उनका देह-परिमाण इस प्रकार हैभरत ५०० धनुष्य ७. अर
३० धनुष्य सगर ४५० धनुष्य
सुभूम
२८ धनुष्य मघवा ४२५ धनुष्य
महापद्म २० धनुष्य सनत्कुमार ४१५ धनुष्य
हरिषेण १५ धनुष्य शांति ४० धनुष्य
११. जय १२ धनुष्य कुन्थु ३५ धनुष्य
१२. ब्रह्मदत्त ७ धनुष्य २३६/१९. चौदह रत्नों के अधिपति सभी चक्रवर्ती काश्यपगोत्रीय होते हैं। वीतराग तथा देवेन्द्रों द्वारा वंदित जिनेश्वर देव ने ऐसा कहा है। २३६/२०-२५. चक्रवर्तियों का आयुष्य, उनके नगर तथा माता-पिता के नाम इस प्रकार हैंचक्रवर्ती
नगर माता
पिता १. भरत ८४ लाख पूर्व विनीता सुमंगला ऋषभ २. सगर ७२ लाख पूर्व
अयोध्या यशोमती सुमित्रविजय ३. मघवा ५ लाख वर्ष
श्रावस्ती भद्रा
समुद्रविजय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org