Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
२०७
तिरस्कार। भगवान् का प्रतिमा में स्थित रहना। २९९. तम्बाक गांव में पार्खापत्यीय स्थविर नंदिषेण प्रतिमा में स्थित । उन्हें चोर समझ आरक्षक द्वारा हनन। भय, गोशालक द्वारा दहन । वहां से कूपिका सन्निवेश में उन्हें गुप्तचर समझ कर पकड़ लिया। विजया और प्रगल्भा नामक दो परिव्राजिकाओं ने उन्हें मुक्त कराया। वहां से भगवान् और गोशालक-दोनों भिन्न-भिन्न मार्ग पर चल पड़े। ३००. चोरों ने गोशालक को पथ में पागल समझ कर पकड़ लिया और उससे भार वहन करवाया। भगवान् विशाला नगरी में गए। वहां लोहकार ने घन से प्रहार करना चाहा। देवेन्द्र ने अवधिज्ञान से जाना और उसी पर प्रहार कर उसे मार डाला। ३०१. ग्रामाक सन्निवेश में बिभेलक यक्षायतन। शालिशीर्ष ग्राम में व्यंतरी कटपूतना का तापसी रूप बनाकर अपनी जटा से भगवान् पर पानी की वर्षा करना । व्यंतरी उपशान्त हुई और भगवान् की स्तुति कर चली गई। व्यंतरी की वेदना को समभाव पूर्वक सहन करने से भगवान् को लोकप्रमाण अवधिज्ञान की उत्पत्ति। ३०२. महावीर पुनः भद्रिका नगरी में आए, वहां छठे वर्षावास में विचित्र तपस्याएं कीं। छठे मास में गोशालक आया। मगध देश में निरुपसर्ग रूप में ऋतुबद्धकाल में विचरण किया। ३०३. आलभिका नगरी में सातवां वर्षावास और वहां से भगवान् कुंडाक सन्निवेश के देवकुल में प्रतिमा में स्थित हो गए। गोशालक मंदिर की प्रतिमा की ओर पीठ करके बैठा। वहां से मर्दना नामक गांव में बलदेव के मंदिर में भगवान् प्रतिमा में स्थित हो गए। गोशालक प्रतिमा की जननेन्द्रिय को मुंह में लेकर स्थित हो गया। यह पागल है, ऐसा सोचकर लोगों ने उसे छोड़ दिया। ३०४. बहुशाल नामक ग्राम में शालवन नामक उद्यान था। वहां कटपूतना नामक व्यन्तरी ने प्रतिमा में स्थित भगवान् को कष्ट दिये। उपशांत होने पर उसने भगवान् की पूजा की। लोहार्गला राजधानी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। वहां भगवान् को गुप्तचर समझ कर पकड़ लिया। उत्पल के कहने पर उन्हें मुक्त कर दिया। ३०५. भगवान् पुरिमताल नगर में गए। वहां वग्गुर नाम का नि:संतान श्रेष्ठी रहता था। देवयोग से पुत्र होने पर वह मल्लिनाथ की प्रतिमा की अर्चना करता था। भगवान् उर्णाक गांव में जाकर प्रतिमा में स्थित हो गए। गोशालक ने आगंतुक दंपति को अशिष्ट वचन कहे। उन्होंने उसे पीटा और बांस के झुरमुट में फेंक दिया। ३०६. गोशालक द्वारा गोभूमि में ग्वालों को 'वज्रलाढो!' म्लेच्छो! कहने पर उन्होंने कुपित होकर गोशालक को बांस के झुरमुट में फेंक दिया। जिनेश्वर देव महावीर के उपशम ने उसे मुक्त कर दिया। राजगृह में आठवां वर्षावास बिताने के बाद भगवान् अनार्य देश-लाढवज्रभूमि में गए। अनार्य लोगों ने अनेक उपसर्ग दिए।
१-६. देखें परि. ३ कथाएं।
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