Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति तथा आहारकनामकर्म का क्षय करता है। (यदि प्रतिपत्ता तीर्थंकर हो तो वह केवल आहारकनामकर्म का ही क्षय करता है)। १११/५. चरम समय में ज्ञानावरणपंचक, चतुर्विध दर्शनावरण तथा पांच प्रकार के अंतराय का क्षय कर वह केवली होता है। ११२. फिर वह एकीभाव से सभी दिशाओं में सम्पूर्ण रूप से लोक-अलोक को देखता है। भूत, भविष्यद्
और वर्तमान में ऐसा कोई भी ज्ञेय नहीं है, जिसे केवली न देखता हो। ११३. अब मैं जिन-प्रवचन की उत्पत्ति, प्रवचन के एकार्थक, एकार्थक के विभाग, द्वारविधि, नयविधि, व्याख्यानविधि तथा अनुयोग-इनका विवरण प्रस्तुत करूंगा। ११४. प्रवचन, श्रुत और अर्थ-ये तीनों एकार्थक हैं (लेकिन इनमें कुछ अंतर है)। इन तीनों के पांच-पांच एकार्थक हैं। ११५. श्रुतधर्म', तीर्थ', मार्गरे, प्रावचन, प्रवचन-ये प्रवचन के एकार्थक हैं। सूत्र, तंत्र, ग्रन्थ, पाठ और शास्त्र-ये सूत्र के एकार्थक हैं। ११६. अनुयोग के पांच एकार्थक हैं-अनुयोग, नियोग, भाषा, विभाषा तथा वार्तिक । ११७. अनुयोग के सात निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, वचन और भाव। ११८. अननुयोग-अनुयोग के दृष्टान्त
• द्रव्यअननुयोग-अनुयोग-वत्सक गौ का दृष्टान्त ।
१. आवहाटी १ पृ. ५८; सुगतिधारणाद् वा श्रुतं धर्मोऽभिधीयते-सुगतिधारण करने के कारण श्रुत को धर्म कहा है। २. प्रवचन का आधारभूत होने के कारण तीर्थ को प्रवचन कहा गया है। ३. आत्मा का शोधन करने के कारण प्रवचन का एक पर्याय मार्ग है अथवा जिससे शिव-मोक्ष का अन्वेषण किया जाता
है, वह मार्ग है (आवहाटी १ पृ. ५८)। ४. आवहाटी १ पृ. ५८; इह च प्रवचनं सामान्य श्रुतज्ञानम्। यहां सामान्य श्रुतज्ञान को प्रवचन कहा गया है। ५. अनुयोग-सूत्र का अर्थ के साथ अनुकूल और अनुरूप सम्बन्ध अनुयोग है। नियोग-शब्द और अर्थ का नियत और निश्चित योग नियोग है, जैसे-घट शब्द के उच्चारण से घट का ही बोध होता
है, पट का नहीं। भाषा-भाषा के द्वारा अर्थ व्यक्त करना। विभाषा-विविध प्रकार से व्याख्या करना अथवा पर्यायवाची शब्दों से वस्तु के स्वरूप का कथन करना।
वार्तिक-पद के सम्पूर्ण पर्याय का अर्थ-कथन (आवहाटी १ पृ. ५८)। ६. ग्वाला दूध का दोहन करते समय यदि काली गाय के बछड़े को सफेद गाय को चूंघने के लिए छोड़ता है अथवा सफेद
गाय के बछड़े को काली गाय को चूंधने के लिए छोड़ता है तो न काली गाय दूध देती है और न सफेद गाय। वह दूध से वंचित रह जाता है, यह अननुयोग है। वह यदि तत्जात बछड़े को चूंधने के लिए छोड़ता है तो उसे दूध मिलता है, यह अनुयोग है (आवहाटी १ पृ. ५९)।
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