Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
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• क्षेत्रअननुयोग-अनुयोग-कुब्जा' का दृष्टान्त । • कालअननुयोग-अनुयोग-स्वाध्याय का दृष्टान्त।
• वचनअननुयोग-अनुयोग-बधिरोल्लाप तथा ग्रामेयक का दृष्टान्त । ११९. भावविषयक अननुयोग-अनुयोग के सात उदाहरण हैं-१. श्रावकभार्या २. साप्तपदिक ३. कोंकणक दारक' ४. नकुल ५. कमलामेला ६. शांब का साहस० ७. श्रेणिक का कोप । १२०. भाषक, विभाषक तथा व्यक्तिकर विषयक उदाहरण इस प्रकार हैं-१. काष्ठ २. पुस्त ३. चित्र ४. श्रीगृहिक ५. पुण्ड्र ६. देशिक । २ १२१. प्रस्तुत दृष्टान्त आचार्य अथवा शिष्य या दोनों के एक साथ हैं-१. गाय३ २. चंदनकंथा ३. चेटी१५ ४. श्रावक'६ ५. बधिर पुरुष७ ६. टंकणक" । १२२. वह शिष्य किसके लिए अप्रीतिकर नहीं होता, जो श्रुतसंपदा से संपन्न नहीं है, निरुपकारी है, स्वच्छंदमति है, संयम से उत्प्रव्रजित होने वालों का साथ देने वाला है तथा स्वयं उत्प्रव्रजन के लिए समुद्यत
१२३. जो विनयावनत, कृतप्राञ्जलि, गुरु के अभिप्रायानुसार वर्तन करने वाला, गुरुजनों का आराधक होता है, उसे गुरु विविध प्रकार का ज्ञान शीघ्र करा देते हैं।
१-११. देखें परि. ३ कथाएं। १२. सामायिक आदि सूत्र को काष्ठ आदि दृष्टान्तों से उपमित किया है
काष्ठकर्म-जैसे कोई बढ़ई काष्ठ को कुछ आकार देता है। कोई बढई आकार विशेष के स्थूल अवयवों का निष्पादन करता है। कोई उस आकार के समस्त अंगोपांग का निर्माण करता है। इसी प्रकार भाषक सामायिक का स्थूल अर्थमात्र करता है। विभाषक उसका विभिन्न प्रकार से अर्थ करता है तथा व्यक्तिकर सामायिक की व्युत्पत्ति, अतिचार, अनतिचार, फल आदि का निरूपण करता है। उसी प्रकार पुस्तकर्म, चित्रकर्म आदि के उदाहरण समझने चाहिए। पुस्तकर्म-कोई केवल पुस्त का आकारमात्र बनाता है, कोई स्थूल अवयवों का निष्पादन करता है तथा कोई उसे संपूर्ण आकार में परिवर्तित कर देता है। चित्रकर्म-कोई तूलिका से इष्टचित्र का आकार मात्र बनाता है। कोई हरिताल आदि से अवयवों की भिन्नता दिखाता है तथा कोई संपूर्ण चित्र बना देता है। श्रीगहिक-कोई भांडागारिक केवल रत्नों के भाजन मात्र को जानता है, कोई उन रत्नों को अच्छे या बुरे रूप में पहचानता है तथा कोई उनके गुणों का ज्ञाता होता है। पुंडरीक--कोई पद्म को ईषद् विकसित, कोई अर्ध विकसित और कोई पूर्ण विकसित रूप में जानता है। देशिक-कोई मार्गदर्शक मार्ग की दिशामात्र बताता है। कोई उस मार्ग पर स्थित ग्राम, नगर आदि की अवस्थिति बताता है तथा कोई उन ग्राम, नगरों के दोष और उनकी विशेषताएं भी बताता है।
इन सब में भाषक, विभाषक तथा व्यक्तिकर की समायोजना करनी चाहिए (आवहाटी १ पृ.६४)। १३-१५.देखें परि. ३ कथाएं। १६, १७.श्रावक और बधिर पुरुष ये दोनों कथाएं पहले आ चुकी हैं श्रावक के लिए देखें कथा सं. १४ श्रावकभार्या तथा
बधिरपुरुष के लिए देखें कथा सं. १२ बधिरोल्लाप। १८. देखें परि. ३ कथाएं।
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