Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
२०९.
२११.
२०३/८-१०. तीर्थंकरों की प्रथम भिक्षा के समय दिव्य वृष्टि एवं वसुधारा का परिमाण। २०३/११, १२. प्रथम दानदाताओं की गति, उपपात आदि। २०४. ऋषभ को पूजने का बाहुबलि का चिन्तन, धर्मचक्र का निर्माण। २०४/१, २. ऋषभ का विहारक्षेत्र। २०५.
ऋषभ का उपसर्गरहित विहरण। २०६, २०७. छद्मस्थपर्याय-काल और कैवल्य-प्राप्ति। २०७/१. देवों द्वारा कैवल्य-महोत्सव। २०८.
ऋषभ को कैवल्य तथा आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति का भरत को निवेदन।
पहले पूजार्ह कौन? ऋषभ या चक्ररत्न? २१०. ऋषभसेन तथा ब्राह्मी आदि की दीक्षा।
ऋषभ के पुत्र एवं पौत्रों की दीक्षा। २११/१, २. मरीचि की प्रव्रज्या के कारण का निर्देश। २१२. भरत की विजय-यात्रा एवं द्वादशवर्षीय अभिषेक। २१३. बाहुबलि द्वारा प्रतिमाग्रहण। २१४. मरीचि द्वारा सामायिक आदि ११ अंगों का अध्ययन। २१५-२१७. संयम में शिथिल होने पर मरीचि का चिंतन । २१८. मरीचि द्वारा त्रिदंडी परिव्राजक होने का चिंतन । २१९-२२४. त्रिदंडी परिव्राजक का स्वरूप और परिव्राजक परंपरा का सत्रपात। । २२५. मरीचि द्वारा धर्मोपदेश। २२६. मरीचि का भगवान् ऋषभ के साथ-साथ विचरण.......... । २२७. अष्टापद पर्वत पर समवसरण, ध्वजोत्सव का प्रारम्भ, माहण आदि को काकिणी रत्न से
चिह्नित। २२८, २२८/१.
अर्धभरत के अधिष्ठाता राजाओं के नाम तथा उनके द्वारा जिनेन्द्रमुकुट को धारण करना।
छह-छह महीनों में श्रावकों की परीक्षा, नौवें जिनान्तर के समय मिथ्यात्व का प्रवर्तन । २३०.
माहणों की दान आदि से संबंधित द्वारगाथा। २३१. अष्टापद पर्वत पर भरत द्वारा पृच्छा। २३२. जिन, चक्रवर्ती, वासुदेव के वर्ण, नाम, गोत्र आदि विषयक द्वारगाथा। २३२/१-२३४. भगवान् ऋषभ द्वारा भावी तीर्थंकरों का नामोल्लेख। २३४/१-२३६. भरत के पूछने पर भावी चक्रवर्तियों के नामोल्लेख। २३६/१-५. तीर्थंकरों के वर्ण एवं शरीर-अवगाहना। २३६/६. तीर्थंकरों के गोत्र। २३६/७-९. तीर्थंकरों की जन्मभूमि। २३६/१०, ११. तीर्थंकरों की माताओं के नाम।
२२९.
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