Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
४८१.
४८२.
४८३.
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४८४.
गंगाओ दोकिरिया, छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती । थेरा य गोट्ठमाहिल, पुट्ठमबद्धं परूवेंति' ॥ सावत्थी उसभपुरं, सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुर, रहवीरपुरं च नगराई ॥ चोद्दस सोलस वासा, चउदसवीसुत्तरा " य दोन्नि सया । अट्ठावीसा य दुवे, पंचेव सया उ१२ चोयाला १३ ॥ पंचसया चुलसीता, छच्चेव सता नवोत्तरा पत्ती दुवे, उप्पण्णा निव्वुए ४८७/१. चोद्दसवासाणि१५ तदा, जिणेण उप्पाडितस्स तो बहुरयाण दिट्ठी, सावत्थीए
४८५.
४८६.
४८७.
जं च महाकप्पसुतं, जाणि य सेसाणि छेदसुत्ताणि । चरणकरणाणुओगोत्ति कालियत्थे उगताई ॥
१. सेसाई (ब, सला) ।
२. त्ताइ (ब, स, ला) ।
३. गयाणि ( म, स्वो ५६० / २७७७) ।
४. समुच्छा (हा, महे), समुच्छेद (रा) । ५. बद्धिगा (ला) ।
बहुरय-पदेस - अव्वत्त- समुच्छ'- दुग-तिग-अबद्धिगा' चेव । 'सत्तेते निण्हगा खलु, तित्थम्मि उ वद्धमाणस्स ६ ॥ बहुरय जमालिपभवा, जीवपदेसा य तीसगुत्ताओ । अव्वत्ताऽऽ साढाओ, सामुच्छेदाऽऽसमित्ताओ" ॥
६. एएसिं निग्गमणं, वोच्छामि अहाणुपुव्वीए (अपा, लापा, मटीपा, हाटीपा, बपा, महे), सत्तेते निण्हगा खलु, वुग्गहो होंत वक्कंता (स्वो ५६१ / २७८२), निभा ५५९६, उनि १६७ ।
४८७/२. जेट्ठा सुदंसण जमालिऽणोज्ज सावत्थि पंचसया य सहस्सं, ढंकेण जमालि
७. असमि' (महे), उनि १६८, ठाणं ७ / १४०, स्वो ५६२ / २७८३ । ८. परूविंसु (बपा, अपा, लापा, मटीपा, हाटीपा), उनि १६९, ठाणं ७/१४१, स्व ५६३ / २७८४ ।
९. स्वो ५६४ / २७८५, निभा ५६२२, उनि १७०, ठाणं ७ / १४२ । १०. चउदस ( अ, ब ) सर्वत्र ।
११. चोद्दावी (निभा, महे ) ।
१२. य ( अ, ब, स, ला, महे) ।
होंति ।
सेसा " ||
नाणस्स ।
समुप्पण्णा १६ ॥
तिंदुगुज्जाणे । मोत्तूणं ७ ॥
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१३. निभा ५६१८, स्वो ५६५ / २७८६, उनि १७१ । १४. स्वो ५६६ / २७८७, उनि १७२, निभा ५६२१ । १५. 'वासाई (स्वो) ।
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१६. स्वो २७८८, उनि १७२/१, निभा ५६११, मलधारी हेमचन्द्र ने टीका में ४८७/१-१४ इन चौदह गाथाओं के लिए नियुक्ति गाथा का संकेत किया है। टीकाकार हरिभद्र एवं मलयगिरि ने इनके लिए 'मूलभाष्यकृद् यथाक्रमं स्पष्टयन्नाह' का उल्लेख किया है। (हाटीमूभा १२५-१३८) वस्तुतः ये गाथाएं मूल भाष्य की हैं। इन गाथाओं पर विशेषावश्यक भाष्यकार ने व्याख्या लिखी है। नियुक्तिकार ने गाथा ४८२-८७ तक की छह गाथाओं में सभी निह्रवों की संक्षिप्त जानकारी दे दी है। स्वो में ये भाष्यगाथा के
क्रम में हैं। चूर्णि में एक दो गाथाओं का संकेत मिलता है। लेकिन व्याख्या लगभग सभी गाथाओं की विस्तार से मिलती है। निशीथ भाष्य में निह्नववाद से संबंधित गाथाओं में बहुत अधिक क्रमव्यत्यय है । (देखें टिप्पण गा. ४८७ / १५ का)
१७. स्वो २७८९, उनि १७२/२, निभा ५५९७ ॥
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