Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
५९१.
५९२.
५९३.
५९४.
५९५.
दंड कवाडे मंथंतरे य संहरणया' सरीरत्थे। भासाजोगनिरोधे, सेलेसी सिज्झणा चेव॥ जह उल्ला साडीया', आसु सुक्कति विरल्लिया संती। तह कम्मलहुगसमए, वच्चंति जिणा समुग्घातं ॥ लाउयएरंडफले, अग्गी धूमे उसूरे धणुविमुक्के। गतिपुव्वपओगेणं, एवं सिद्धाण वि गईओ ॥ कहिं पडिहता सिद्धा? कहिं सिद्धा पइट्ठिता। कहिं बोंदि६ चइत्ता णं? कत्थ गंतूण सिज्झई ? ॥ अलोए पडिहता सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिता। इहं बोंदिं चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झई ॥ ईसीपब्भाराए, सीयाए जोयणम्मि लोगंतो। बारसहिं जोयणेहिं, सिद्धी सव्वट्ठसिद्धाओ ॥ निम्मलदगरयवण्णा, तुसार-गोखीर-हार-सरिवण्णा। उत्ताणयछत्तयसंठिता य भणिता जिणवरेहिं ॥ एगा जोयणकोडी, बायालीसं 'च सयसहस्साई ११ । तीसं चेव सहस्सा, दो चेव सता अउणवण्णा२ ॥ बहुमज्झदेसभागे२, अट्ठेव य४ जोयणाणि'५ बाहल्लं। चरमंतेसु'६ य तणुई, अंगुलऽसंखिज्जई भागं ॥
५९५/१.
५९५/२.
५९५/३.
५९५/४.
१. साहर" (हा, दी, स्वो ६७५/३६२९), साहण्णया (महे)।
नियुक्तिगाथा सुगमाः, मूलावश्यकटीकातश्च बोद्धव्या २. सादीया (स्वो ६७६/३६३०)।
इति' (महेटी पृ. ६११) का उल्लेख है। ये गाथाएं भाषा शैली की ३. य उसु (म, महे)।
दृष्टि से निगा की प्रतीत नहीं होती क्योंकि इन गाथाओं में ४. गईपुव्व (महे)।
ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी और सिद्धों की अवगाहना का विस्तार से वर्णन ५. गती तु (स्वो ३७६१)।
है। इतना विस्तार नियुक्तिकार नहीं करते हैं अतः ये गाथाएं भाष्य ६. बुंदि (म), सर्वत्र।
की अधिक संगत लगती हैं अथवा बाद के आचार्यों द्वारा जोड़ दी ७. उ ३६/५५, औ १९५/१, प २६७/२, स्वो ६७८/३७७८ ।
गई हैं। इन गाथाओं को निगा के क्रम में नहीं मानने पर भी चालू ८. सिज्झति (म, स्वो ६७९/३७७९), वुच्चइ (अ), गा. ५९४ और ५९५ विषयवस्तु में कोई व्यवधान नहीं आता। में अनुष्टुप् छंद है। उ ३६/५६, प २६७/३, औ १९५/२।
१०. स्वो ३८०१। ९. स्वो ३८००, सव्वत्थसि (म),५९५/१-१४ ये चौदह गाथाएं मुद्रित ११. भवे सतसहस्सा (स्वो ३८०२)।
हा, दो, म में निगा के क्रमांक में व्याख्यात हैं। सभी हस्तप्रतियों में १२. °णयण्णा (स)। ये गाथाएं मिलती हैं। चूर्णि में प्राय: गाथाओं का संकेत मिलता है १३. बहुदेसमज्झभाए (स्वो)। किन्तु व्याख्या नहीं है। मुद्रित स्वो में ५९५/१० को छोड़कर सभी १४. तु (अ, स्वो)। गाथाएं भागा के क्रम में व्याख्यात हैं। महेटी में ''ईसी' इत्यादिका १५. णाई (म, स, स्वो)। ओगाहणाई सिद्धे इत्यादिगाथापर्यन्ताः पञ्चदश प्रायो १६. चरिम' (म, स्वो ३८०४)।
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