Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
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६४७/१.
खेत्तस्स नत्थि करणं, आगासं जं अकित्तिमो भावो। वंजणपरियावन्नं, तहावि पुण उच्छुकरणाई ॥ काले वि नत्थि करणं, तहावि पुण वंजणप्पमाणेणं । बव-बालवाइ करणेहि णेगहा होइ ववहारो ।।
६४७/२.
१.तु. सूनि ९,६४७/१-१० ये दस गाथाएं सभी हस्तप्रतियों में हैं । मुद्रित हा, म, दी में ये निगा के क्रम में हैं। चूर्णि में इन गाथाओं का संकेत नहीं है किन्तु संक्षिप्त व्याख्या है। ये गाथाएं करण शब्द की व्याख्या रूप हैं तथा इनमें ६४७ वीं गाथा की विस्तृत व्याख्या है। स्वो में इन गाथाओं का कोई उल्लेख नहीं है। महे में ३३६२ वीं गाथा की व्याख्या में टीकाकार कहते हैं कि 'करणे भए य अंते' इत्यादिगाथायाः समनन्तरं नामं ठवणा दविए इत्यादिका बह्वयो गाथा निर्युक्तौ दृश्यन्ते ताश्च भाष्यकारेण प्रक्षेपरूपत्वादिना केनापि कारणेन प्रायो न लिखिताः । केवलं तदर्थ एव भाष्यगाथाभिलिखितः तदत्र कारणं स्वधियाऽभ्यूह्यमिति' (महेटी पृ. ६४१)। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि भाष्यकार के समय तक ये गाथाएं नियुक्तिगाथा के रूप में प्रसिद्ध नहीं हुई थीं। अधिक संभव है स्पष्टीकरण हेतु ये गाथाएं बाद में जोड़ दी गई हों। वैसे भी नियुक्तिकार विषय का प्रायः इतना विस्तार नहीं करते। इसके अतिरिक्त इन गाथाओं को निगा न मानने से चालू विषयक्रम में कोई अंतर नहीं
आता। २. इस गाथा के बाद सभी हस्तप्रतियों में आठ अन्यकर्तृकी गाथाएं हैं । ब और ला प्रति में 'गाथाष्टकं ऽन्या व्या' का उल्लेख है। इनमें कुछ गाथाएं मुद्रित स्वो और महे में भागा के क्रम में हैं
जं वत्तणाइ रूवो, कालो दव्वस्स चेव पज्जाओ। तो तेण तस्स तम्मि व, न विरुद्ध सव्वहा करणं ॥१॥
(महे ३३४६, स्वो ४०७२) अहवेह कालकरणं, बवादि जोइसियगतिविसेसेणं । सत्तविहं तत्थ चरं, चउव्विधं थिरमहक्खातं ॥२ ।।
(महे ३३४७,स्वो ४०७३) बवं च बालवं चेव, कोलवं थीविलोयणं । गरादि वणियं चेव, विट्ठी हवति सत्तमा ॥३॥
(महे ३३४८,स्वो४०७४) सउणी चउप्पय नागं, किंसुग्घं च करणं थिरं चउहा। बहुलचउद्दसिरत्तिं, सउणी सेसं तियं कमसो॥४॥
(स्वो ४०७६, महे ३३५०) पक्खतिधओ दुगुणिता, दुरूवरहिता य सुक्कपक्खम्मि। सत्तहिए देवसियं, तं चिय रूवाहियं रत्तिं ॥५॥
(स्वो ४०७५, महे ३३४९) इन पांच गाथाओं के लिए मुद्रित स्वो के टिप्पण में मालवणियाजी ने निम्न उल्लेख किया है-"४०७२-४०७६ एता: पंच गाथा स्थूलाक्षरेण मुद्रयित्वा संपादकेन नियुक्तिगता मता: परन्तु तद्विषये हे वृत्तौ न कोऽपि निर्देशः"
किण्हनिसि तइय दसमी, सत्तमि चाउद्दसीसु अह विट्ठी। सुक्कवउत्थिक्कारसि, निसि अट्ठमि पुण्णिमाइ दिवा ॥६॥ सुद्धस्स पडिवयनिसिं, पंचमिदिण अट्ठमीइ रत्तिं तु। दिवसस्स बारसी पुण्णिमाइ, रत्तिं बवं होइ ॥७॥ बहुलस्स चउत्थीए, दिवा य तह सत्तमीइ रत्तिम्मि।
एक्कारसीय उ दिवा, बवकरणं होइ नायव्वं ॥८॥ मुद्रित हा, दी और म में प्रथम दो गाथाओं के अतिरिक्त बाकी छहों गाथाएं टीका में उगा के रूप में हैं (हाटी पृ. ३०९, मटी प ५६५, ५६६) मुद्रित चू में भी इनमें से कुछ गाथाएं उगा के रूप में हैं।
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