Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
१४७
६४०.
६४१.
६४२.
६३९. न वि' संखेवो न वित्थारु, संखेवो दुविह सिद्ध-साधूणं।
वित्थरतोऽणेगविहो, ‘पंचविधो न जुज्जती२ तम्हा ॥ अरहंतादी नियमा, साधू साधू य तेसु भइयव्वा। तम्हा पंचविधो खलु, हेतुनिमित्तं हवइ सिद्धो॥ पुव्वाणुपुव्वि न कमो, नेव य पच्छाणुपुव्वि एस भवे। सिद्धाईया पढमा, बितियाए साधुणो आदी ।
अरहंतुवदेसेणं', सिद्धा नजंति तेण अरहाई। न वि ‘कोइ वि" परिसाए, पणमित्ता पणमई० रण्णो॥ एत्थ य पयोयणमिणं, कम्मखओ५ मंगलागमो चेव'२ । इहलोय-पारलोइय, दुविधफलं तत्थ दिटुंता॥ इहलोइ अत्थ-कामा, आरोग्गं ‘अभिरती य१२ निप्फत्ती । सिद्धी य सग्ग- 'सुकुलप्पच्चायाई य१५ परलोए॥ इहलोगम्मि तिदंडी, सादिव्वं मातुलिंगवणमेव६ | परलोइ चंडपिंगल, हुंडियजक्खो य दिटुंता॥
नमोक्कारनिज्जुत्ती समत्ता ६४५/१. नंदि-अणुयोगदारं, विधिवदुवग्घाइयं च नाऊणं ।
काऊण पंचमंगल, आरंभोर होति सुत्तस्स ॥
६४३.
६४४.
६४५.
१.x (स्वो)।
१४. निव्वत्ती (स्वो)। २. न जुजई पंचहा (म)।
१५. सुकुले पच्चा (म,स्वो ७२२/३९४९), "च्चायाईइ (लापा)। ३. जम्हा (स्वो ७१७/३९२७), हरिभद्र ने इस गाथा के बारे में छंदविमर्श १६. माउलुंग' (महे)।
करते हुए लिखा है- 'इहास्या गाथाया अंशकक्रमनियमाच्छंदो १७. स्वो ७२३/३९५०।। विचितौ लक्षणमनेन पाठेन विरुध्यते, नसंखेवो, इत्यादिना यत १८. भणिऊणं (लापा, हाटीपा, बपा)। इहाद्या एव पंचमात्रोऽशकः इत्यतोऽपपाठोऽयमिति, ततश्चापिशब्द १९. मारंभो (स)। एवात्र विद्यमानार्थो द्रष्टव्यः नवि संखेवो इत्यादि' (हाटी पृ. ३००)। २०. यह गाथा सभी हस्तप्रतियों में उपलब्ध है। मुद्रित हा, दी, म में निगा ४. अरिहं (ब, म)।
के क्रमांक में है। टीकाकार हरिभद्र, मलयगिरि और दीपिकाकार ५. उ (महे), तु (स्वो)।
ने भी अपनी टीका में इसे नियुक्तिगत माना है-सूत्रस्पर्शिक६. तेसि (स्वो ७१८/३९२८)।
नियुक्तिगतामेव गाथामाह (हाटी पृ. ३०३, मटी प५५५) ७. स्वो ७१९/३९३६।
सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिः (दी प १९५)।चूर्णि में सुत्तं भणति उल्लेख ८. अरिहं (ब, म)।
के साथ पूरी गाथा मिलती है। यह गाथा चूर्णि में संपादक द्वारा जोड़ी ९. कोई (ब, स, हा, रा)।
गई है क्योंकि चूर्णि में इसकी कोई व्याख्या नहीं है। सूत्र के १०. "मते (स्वो ७२०/३९३९)।
साथ भी इस गाथा का कोई संबंध नहीं है क्योंकि सूत्र 'करेमि भंते ११. कम्मक्खय (महे, स्वो)।
सामाइयं' है। स्वो तथा महे में इस गाथा का कोई उल्लेख नहीं १२. चेय (स्वो ७२१/३९४८)।
है। यह संबंध-गाथा सी प्रतीत होती है अतः भाष्यकार या अन्य १३. "रईइ (बपा)।
आचार्य द्वारा बाद में जोड़ दी गई है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी यह नियुक्तिगाथा प्रतीत नहीं होती।
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