Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१२०
आवश्यक नियुक्ति
५०२.
५००. अज्झयणं पि य तिविधं, सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव।
सेसेसु वि अज्झयणेसु होति एमेव निज्जुत्ती' ।। ५०१. जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे।
तस्स सामाइयं होति, इति केवलिभासितं ।। जो समो सव्वभूतेसु, तसेसु थावरेसु य।
तस्स सामाइयं होति, इति केवलिभासितं ॥ ५०३. सावज्जजोगप्परिवजणट्ठा', सामाइयं केवलियं पसत्थं ।
गिहत्थधम्मा परमं ति णच्चा, कुज्जा बुहो आयहियं परत्था । ५०४. सव्वं ति भाणिऊणं, विरती खलु जस्स सव्विया नत्थि।
सो सव्वविरतिवादी, चुक्कति 'देसं च सव्वं च ॥ ५०५. सामाइयम्मि तु कते, समणो इव सावगो हवति जम्हा।
एतेण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥ ५०५/१. जीवो पमादबहुलो, बहुसो वि य बहुविहेसु अत्थेसु।
एतेण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥ ५०६. जो ण वि वदृति रागे, न वि दोसे दोण्ह मज्झयारम्मि।
सो होति उ मज्झत्थो, सेसा सव्वे अमज्झत्था ॥ खेत-दिसर-काल-गति२. भविय-सण्णि-ऊसास दिट्ठि आहारे । पज्जत्त-सुत्त जम्म-ठिति५ वेय सण्णा कसायाऊ६ ॥
५०७.
१. यह गाथा स्वो (५७९/३१५७) तथा महे (२६७४) में निगा के तीन गाथाएं मिलती हैं। प्रतियों में 'गाथात्रयं भा व्या' का क्रम में है। अ, ब और ला प्रति में इसके लिए 'इयं मूल भाव्या ' उल्लेख है। हाटी (पृ. २२०) तथा मटी (प ४३५) में ये 'आह च का उल्लेख है। यद्यपि टीकाकारों ने 'मूलभाष्यकृत्' का उल्लेख भाष्यकार:' उल्लेख के साथ उधत गाथा के रूप में मिलती हैं। किया है किन्तु यह गाथा नियुक्ति की होनी चाहिए। चूर्णि में भी ८. स्वो ५८४/३१७३, मूला ५३३ । यह गाथा व्याख्यात है। चूर्णिकार ने इसकी व्याख्या में 'अण्णे पुण ९. यह गाथा हा, म, दी में निगा के क्रमांक में व्याख्यात है किन्तु स्वो इमा गाधा उवरि चेव निरुत्तदारअवसाणे वक्खाणंति' का एवं महे में यह गाथा नहीं मिलती है। यह गाथा पुनरावृत्त सी उल्लेख किया है।
लगती है । गा. ५०६ की बात ही इसमें व्याख्या रूप में कही गयी २. अनुद्वा ७०८/गा. १, स्वो ५८०/३१६२।
है अतः यह भाष्य की या बाद में जोड़ी गई प्रतीत होती है। ३. इई (महे)।
१०. स्वो ५८५/३१७४। ४. अनुद्वा ७०८/गा. २, स्वो ५८१/३१६३ ।
११. दिसा (अ, म, रा, हा, दी)। ५. जोगं परिरक्खणट्ठा (महे), 'जोगं परिवज (स्वो)।
१२. गई (रा, महे)। ६. परत्थं (अ, हा, दी), समत्था (अ), स्वो ५८२/३१६४।
१३. उस्सास (स्वो)। ७. सव्वं च देसं च (स्वो ५८३/३१६७), इस गाथा के बाद स प्रति के १४. माहारे (अ, रा, हा, दी)।
अतिरिक्त प्रायः सभी हस्तप्रतियों में तथा हा और म में जति किंचि..... १५. द्विति (अ, महे, हा, दी), ठिई (म)। (स्वो ३१७०) जो वा...... (स्वो ३१७१) जो पुण.....(स्वो ३१७२) १६. “याउं (महे), स्वो ५८६/३१७५ ।
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