Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
आवश्यक निर्युक्ति
३६२/३७.
३६२/३८.
३६३.
३६३/१,२.
३६४.
३६५, ३६६.
३६७.
३६८.
३६९.
३६९/१.
३७०.
३७१.
३७२.
३७३.
३७४.
३७५-३७७.
३७८-४१३.
४१४.
४१५-४१७.
४१८.
४१९, ४२०.
४२१.
४२२, ४२३.
४२४.
४२५, ४२६.
४२७, ४२८.
४२९.
४३०.
४३१.
४३२.
Jain Education International
गणधर की देशना दूसरे प्रहर में क्यों ? कैसे ? गणधर की वाणी का अतिशय ।
दिव्य देवघोष को सुनकर यज्ञ - वाट में प्रशंसा ।
सिंहासन पर उपविष्ट भगवान् की चंवर आदि से देवताओं द्वारा उपासना ।
ग्यारह गणधरों का यज्ञ-वाट में आना ।
१३
गणधरों के नामों का उल्लेख ।
गणधरों के निष्क्रमण का कारण, सुधर्मा से तीर्थ का प्रारम्भ, शेष गणधर निरपत्य । गणधरों की संशय संबंधी द्वारगाथा ।
गणधरों का शिष्य-परिवार ।
भवनपति आदि देवों द्वारा परिषद् सहित भगवान् की केवलज्ञान- उत्पत्ति का उत्सव । महावीर की महिमा सुनकर इंद्रभूति का अहंकारपूर्वक आगमन ।
महावीर द्वारा नाम - गोत्र पूर्वक गौतम को आह्वान |
सर्वज्ञ महावीर द्वारा गौतम की शंका का कथन एवं उसका निवारण ।
संशय छिन्न होने पर गौतम का ५०० शिष्यों के साथ महावीर के पास प्रव्रजित होना ।
गौतम की प्रव्रज्या सुनकर अमर्षवश अग्निभूति का आगमन ।
महावीर द्वारा अग्निभूति के संशय का कथन, उसका निवारण एवं अग्निभूति का शिष्यों के साथ महावीर के शासन में प्रव्रजन ।
शेष गणधरों का संशय निवारण होने पर अपने-अपने शिष्य परिवार सहित भगवान् के शासन में प्रव्रजन ।
गणधरों के क्षेत्र, काल, जन्म एवं गोत्र आदि से संबंधित द्वारगाथा ।
गणधरों के क्षेत्रों का कथन ।
गणधरों से संबंधित नक्षत्रों का कथन ।
गणधरों के माता-पिता के नाम ।
गणधरों के गोत्र ।
गणधरों की गृहवास - पर्याय ।
गणधरों की छद्मस्थ- पर्याय ।
गणधरों की केवली - पर्याय ।
गणधरों का आयु-परिमाण ।
सभी गणधर ब्राह्मण, उपाध्याय तथा चतुर्दशपूर्वी ।
महावीर के जीवन काल में नौ गणधरों का परिनिर्वाण, इंद्रभूति एवं सुधर्मा का राजगृह
में परिनिर्वाण ।
गणधरों का तप, संहनन एवं संस्थान ।
काल के निक्षेप ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org