Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
२३१. पुणरवि य समोसरणे, पुच्छीय' 'जिणं तु'२ चक्किणो भरहे।
अप्पुट्ठो य दसारे, तित्थयरो को इहं भरहे? || २३२. जिण-चक्कि-दसाराणं, वण्ण-पमाणाइ नाम-गोत्ताई।
आउ-पुर- माइ-पितरो, परियाय-गतिं च साहीय ॥ २३२/१. अह भणति जिणवरिंदो, 'भरहे वासम्मि जारिसो अहयं ।
एरिसया तेवीसं, अन्ने होहिंति तित्थयरा ।। २३३. होही अजितो संभव, अभिनंदण सुमति सुप्पभ सुपासो।
ससि-पुप्फदंत-सीतल, सेजंसो वासुपुज्जो यः ।। २३४. विमलमणंतइ धम्मो, संती कुंथू अरो य मल्ली य।
मुणिसुव्वय नमि नेमी, पासो तह वद्धमाणो य॥ २३४/१. अह भणति नरवरिंदो, भरहे वासम्मि जारिसो ‘उ अहं ।
तारिसया कइ अण्णे, ताया! होहिंति रायाणो ? ।। २३४/२. अह भणति जिणवरिंदो, जारिसओ तं नरिंदसठूलो।
'तारिसया३ एक्कारस'', अण्णे होहिंति रायाणो ।। २३५. होही५ सगरो मघवं, सणंकुमारो य रायसठूलो।
संती कुंथू य अरो, होइ सुभूमो१६ य कोरव्वो७ ।।
१. पुच्छई य (रा)। २. जिणे य (बपा, लापा)। ३. स्वो २९३/१७३८। ४. साहीया(को), आहेया (स्वो २९४/१७३९), इस गाथा के बाद
जारिसगा.....(स्वो १७४०, को १७५१, हाटीभा ३८) गाथा मुभा. उल्लेख के साथ सभी हस्तप्रतियों एवं टीकाओं में मिलती है।
चूर्णि में भी इसकी संक्षिप्त व्याख्या मिलती है। ५. जारिसओ नाणदंसणेहि अहं (को), जारिसओ णाणदंसणेण
अहं (स्वो)। ६. स्वो २९५/१७४१, यह गाथा भाष्य तथा टीकाओं में निगा के क्रम में व्याख्यात है किन्तु यह गाथा भाष्य की प्रतीत होती है। क्योंकि भाष्यगाथा जारिसगा.....(स्वो १७४०) में शिष्य ने जो प्रश्न किया है उसी का उत्तर इस गाथा में है अत: यह भाष्यगाथा से जुड़ती है। नियुक्तिकार भाष्यकार के पूर्व हुए हैं अतः यह गाथा भाष्य की होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त इसी शैली में लिखी हुई आगे आने वाली गाथाओं को दोनों विभा में निगा के क्रम में स्वीकृत नहीं किया है। इसके निर्यक्ति न होने का एक
कारण यह भी है कि २३२ की द्वारगाथा सीधी २३३ से जुड़ती है।
होहिति (म, स्वो)। ८. स्वो २९६/१७४२। ९. स्वो २९७/१७४३, १०. अहयं (रा)। ११. तारिसिया (हाटी), एरिसिया (रा)। १२. २३४/१, २ ये दोनों गाथाएं टीकाओं में निगा के क्रम में व्याख्यात
हैं। चूर्णि में इन दोनों गाथाओं का एक पंक्ति में संकेत मात्र है। स्वो में ये दोनों गाथाएं निगा के क्रम में उल्लिखित नहीं हैं किन्तु टिप्पण में दी हुई हैं। को में ये भाष्य गाथा के क्रम में हैं।
ये भाष्य की गाथाएं ही प्रतीत होती हैं । (द्र.टिप्पण २३२/१) १३. एरिसया (अ, ब, दी, हा)। १४. तारिसया उ इगारस (म)। १५. होहिति (स्वो), भरहो (को)। १६. सुधम्मो (स्वो)। १७. स्वो २९८/१७४४, समप्र २३६/१ ।
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