Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
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२३६/४०. अणिदाणकडा' रामा, सव्वे वि य केसवा नियाणकडा।
उडुंगामी रामा, केसव सव्वे अहोगामी ।। २३७. उसभो भरहो अजिते, सगरो मघवं सणंकुमारो य।
धम्मस्स य संतिस्स य जिणंतरे चक्कवट्टिदुगं ॥
१. अणिताणकदा (स्वो)। २. स्वो १७६४, तु. समप्र २४७/२, २३६/३९, ४० इन दोनों गाथाओं में चूर्णि एवं भाष्य में क्रमव्यत्यय मिलता है। टीका में अटुंत २३६/३१ की
गाथा पहले है तथा भाष्य एवं चूर्णि में अणियाण.........२३६/४० वाली गाथा पहले है। इस गाथा के बाद चूर्णि तथा प्राय. सभी टीकाओं में निम्न गाथाएं मिलती हैं
उसभी वरवसभगती, ततियसमा पच्छिमम्मि कालम्मि। उप्पण्णो पढमजिणों, भरहपिता भारहे वासे ॥१॥ पण्णासा लक्खेहि, कोडीणं सागराण उसभाओ। उप्पन्नो अजियजिणो, ततिओ तीसाएँ लक्खेहिं ॥२॥ जिणवसभसंभवाओ, दसहिं लक्खेहि अयरकोडीणं। अभिणंदणो उ भगवं, एवइकालेण उप्पन्नो ॥३॥ अभिणंदणाउ सुमती, णवहिं लक्खेहि अयरकोडीणं। उप्पण्णो सुहपुनो, सुप्पभनामस्स वोच्छामि।॥४॥ णउई य सहस्सेहिं, कोडीणं सागराण पुन्नाणं। सुमतिजिणाओ पउमो, एवतिकालेण उप्पन्नो ॥५॥ पउमप्पभनामाओ, नवहि सहस्सेहि अयरकोडीणं। सुहपुण्णो संपुण्णो, सुपासनामो समुप्पन्नो ॥६॥ कोडीसएहि नवहि उ, सुपासनामा जिणो समुप्पन्नो। चंदप्पभो पभाए, पभासयंतो उ तेलोक्कं १७ ॥ णउती' कोडीहिं, ससी उ सुविहीजिणो समुप्पन्नो। सुविहिजिणाओ नवहिं, कोडीहिं सीतलो जातो ॥८॥ सीतलजिणाउ भगवं, सेजंसो सागराण कोडीए। सागरसयऊणाए, वरिसेहि तहा इमेहिं तु ॥९॥ छव्वीसाय सहस्सेहि, चेव छावट्ठिसयसहस्सेहिं। एतेहि ऊणिया खलु, कोडी मग्गिल्लिया होति ॥१०॥ चउपन्ना अयराणं, सेजसाओ जिणो उ वसुपुज्जो। वसुपुज्जाओ विमलो, तीसहि अयरेहि उप्पन्नो ॥११॥ विमलजिणो उप्पन्नो, णवहि तु अयरेहिऽणंतइ जिणो उ। चउसागरनामेहिं, अणंतईओ जिणो धम्मो ॥१२॥ धम्मजिणाओ संती, तिहिं ति-चउभागपलियऊणेहिं । अयरेहि समुप्पन्नो, पलियद्धेणं तु कुंथुजिणो ॥१३॥ पलियचउब्भागेणं, कोडिसहस्सूणएण वासाणं। कुंथूओ अरणामा, कोडिसहस्सेण मल्लिजिणो॥१४॥ मल्लिजिणाओ मुणिसुव्वओ य चउपन्नवासलक्खेहिं । सुव्वयनामातों नमी, लक्खेहिं छहिं तु उप्पन्नो॥१५॥ पंचहि लक्खेहि ततो, अरिट्ठनेमी जिणो समुप्पन्नो। तेसीतिसहस्सेहिं, सतेहि अट्ठमेहिं वा ॥१६॥
नेमीओ पासजिणो, पासजिणाओ य होति वीरजिणो। अड्डाइजसएहिं गतेहि चरिमो समुप्पन्नो ॥१७॥ हा, म, दी में इन १७ गाथाओं के बाद पहले उसभो....(गा. २३७-३९) आदि तीन गाथाएं हैं। बाद में बत्तीसं.....आदि चार निम्न अन्यकर्तृकी गाथाएं हैं। किन्तु चूर्णि तथा सभी हस्तप्रतियों में ये निम्न गाथाएं उपर्युक्त १७ गाथाओं के साथ ही हैं। दीपिकाकार ने भी 'अत्र प्रत्यन्तरे गाथानां व्यत्ययोऽपि दृश्यते' ऐसा उल्लेख किया है
बत्तीसं घरयाई, काउं तिरियाययाहि रेहाहिं। उड्डाययाहि काउं, पंच घराई ततो पढमे ॥१८॥ पन्नरस जिण निरंतर, सुन्न दुर्गति जिण सुन्नतियगं च। दो जिण सुन्न जिणिंदो, सुन्न जिणो सुन दोण्णि जिणा ॥१९॥ दो चक्कि सुण्ण तेरस, पण चक्की सुन्न चक्कि दो सुन्ना। चक्की सुन्न दु चक्की, सुन्नं चक्की दु सुन्नं च ॥२०॥
दस सुन्न पंच केसव, पण सुन्नं केसि सुन्न केसी य। दो सुन्न केसवो वि य, सुन्नदुगं केसव ति सुन्नं ॥२१॥ ३. स्वो ३००/१७५१, २३७-३९ ये तीन गाथाएं भाष्य एवं चूर्णि में नवमो य......(गा. २३६) के बाद कुछ भाष्य गाथाओं के बाद मिलती है।
किन्तु टीका एवं हस्तप्रतियों में यही क्रम मिलता है।
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