Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक निर्युक्ति
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तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीतिं च होंति कोडीओ । असितिं च सयसहस्सा, 'एयं संवच्छ रे दिण्णं १३ पढमा वरवरिया समत्ता १४७/८. वीरं अरिट्ठनेमिं पासं मल्लिं च वासुपुज्जं च । एते मोत्तूण जिणे, अवसेसा आसि रायाणो ॥ १४७/९. रायकुलेसु वि जाया, विसुद्धवंसेसु खत्तियकुलेसु । न य इच्छियाभिसेया, कुमारवासम्मि पव्वइया ॥ १४७/१०. संती कुंथू य अरो, अरहंता चेव चक्कवट्टी य। अवसेसा तित्थयरा, मंडलिया आसि रायाणो ॥ १४८. एगो भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहि तिहि सतेहि । भयवं च वासुपुज्जो, छहि पुरिससतेहि निक्खं ॥ उग्गाणं भोगाणं, रायण्णाणं ̈ च खत्तियाणं च। चउहि सहस्सेहुसभो ́, सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥ १४९/१. वीरो अरिट्ठनेमी, पासो मल्ली य वासुपुज्जो य । पढमव पव्वइया, सेसा पुण पच्छिमवयम्मि ॥ सव्वे वि एगदूसेण, निग्गता जिणवरा चउव्वीसं । न य नाम अण्णलिंगे, नो गिहिलिंगे कुलिंगे वा९ ॥ 'सुमतित्थ निच्चभत्तो, वसुपुज्जो निग्गतो चउत्थेण १२ । पासो मल्ली विय अट्टमेण सेसा तु छद्वेणं १३ ॥
७. राइ° (ला) ।
८. 'स्सेहिं उसभो (अ, स, रा) ।
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१४७/७.
१४९.
१५०.
१५१.
१. सीई ( म, ब) ।
२. असीयं (अ), असियं (म) ।
३. इंदा दलयंति अरहाणं (ज्ञा. १ / ८ / १९४), आचू. १५ / २६ / ३ । ४. इत्थिया (हाटी) हाटी में इत्थियाभिसेया पाठ है। टीकाकार हरिभद्र ने इसकी कोई व्याख्या नहीं की लेकिन नीचे टिप्पण में 'स्त्रीपाणिग्रहणराज्याभिषेकोभयरहिता' का उल्लेख है। मटी में इच्छियाभिसेया पाठ के आधार पर टीकाकार मलयगिरि ने 'ईप्सिताभिषेका - अभिलषित राज्याभिषेकाः' अर्थ किया है। यहां मी का पाठ सम्यक् लगता है। चूर्णि में इसकी कोई व्याख्या नहीं है। ५. अरि (अ, रा) ।
६. समप्रसू. २२७/१, स्वो २०४ / १६४२ ।
५१
९. समप्रसू. २२७/२, स्वो २०५ / १६४३ ।
१०. मज्झिम (म, ब), कुछ प्रतियों में तथा चूर्णि में यह गाथा अप्राप्त
है। विशेषावश्यकभाष्य में भी इस गाथा का उल्लेख नहीं मिलता है। आचार्य हरिभद्र के निम्न उल्लेख से स्पष्ट है कि यह गाथा प्रसंगवश यहां जोड़ दी गई है - 'साम्प्रतं प्रसंगतोऽत्रैव ये यस्मिन् वयसि निष्क्रान्ता इत्येवमभिधित्सुराह' (हाटी पृ. ९१) । यह गाथा नियुक्ति की नहीं होनी चाहिए।
११. स्वो २०६/१६४४, समप्र सू. २२६ / १ इस गाथा का चूर्ण में केवल संक्षिप्त भावार्थ है, गाथा का प्रतीक नहीं है।
१२. सुमइत्थ निच्चभत्तेण निग्गओ वासुपुज्ज जिण चउत्थेण (म, अ, हा दी) १५१ - १५७ तक की गाथाओं का चूर्णि में कोई संकेत एवं व्याख्या नहीं है ।
१३. स्वो २०७/१६४५, समप्रसू. २२८ / १ ।
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