Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक नियुक्ति
५९. फड्डाई आणुगामी, अणाणुगामी य मीसगा चेव।
पडिवाति अपडिवाती, 'मीसो य'२ मणुस्सतेरिच्छे । ६०. बाहिरलंभे भज्जो, दव्वे खेत्ते य काल भावे य।
उप्पा पडिवाओ वि य, तं उभयं चेगसमएणं ॥ ६१. अब्भंतरलद्धीए', उ तदुभयं नत्थि एगसमएणं ।
उप्पा पडिवाओ वि य, एगतरो एगसमएणं ।। ६२. दव्वाओ असंखेजे', संखेजे यावि पज्जवे लभति।
दो पज्जवे दुगुणिते, लभति य एगाउ दव्वाओ ॥ ६३. सागारमणागारा, ओहिविभंगा जहण्णगा तुल्ला।
उवरिमगेवेजेसु उ, परेण ओही असंखेजो ॥ ६४. नेरइय-देव-तित्थंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा होति।
पासंति सव्वओ खलु, सेसा देसेण पासंति ॥ ६५. संखेज्जमसंखेजो१२, पुरिसमबाहाइ खेत्तओ ओही।
संबद्धमसंबद्धो, लोगमलोगे य संबद्धो २ ॥ ६५/१. गति-नेरइयाईया, हेट्ठा जह वण्णिता तहेव इहं।
इड्डी एसा वणिज्जइ त्ति तो सेसियाओ वि॥ ६६. आमोसहि विप्पोसहि, खेलोसहि५ जल्लमोसही६ चेव।
‘संभिन्नसोय उजुमइ'१५, सव्वोसहि चेव बोधव्वा ॥
१. फड्डा य (म, स, दो, हा, चू)। २. मीसाणि (अ)। ३. मणुय (अ), स्वो ६०/७३५ । ४. तदुभयं (अ, ब, रा, म)। ५. एग (स, हा, दी), स्वो ६१/७४४ । ६. अब्भिंतर (हा, म,दी, ब, चू) ७. अप्रति में इस गाथा का उत्तरार्ध नहीं है, स्वो ६२/७४८ । ८. खेजा (चू) ९. स्वो ६३/७५६। १०. स्वो ६७/७५९। ११. नंदी २२/२, स्वो ६५/७६२ । १२. खेज्जा (चू)।
१३. स्वो ६६/७६८। १४. स्वो ६७/७७२, इस गाथा का चूर्णि में कोई संकेत नहीं
है। किन्तु सभी टीकाओं में यह निगा के क्रम में है। यह गाथा संपूर्ति रूप एवं सूचनात्मक है अतः बाद में जोड़ी गई प्रतीत होती है। चूर्णि में इस गाथा के स्थान पर इसी नियुक्ति की १३, १४ एवं १५ वी गाथा का पुनः संकेत किया गया है। पुनरावर्तन होने के कारण इन्हें पुनः मूल गाथा के
क्रमांक में नहीं जोड़ा है। १५. “सही (म)। १६. मोसहि (म)। १७. “सो उज्जुमइ (हा)। १८.स्वो ६८/७७५/
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