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________________ ४ ४०, ४१. ४२, ४३. ४४. ४५. ४६-५०. ५१. ५२, ५३. ५४. ५५, ५६. ५७. ५८, ५९. ६०, ६१. ६२. ६३. ६४. ६५. ६५/१. ६६, ६७. ६८, ६९. ७०, ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७५/१. ७५/२,३. ७६-७८. ७९. ८०-८१/१ . ८१ / २. ८२. Jain Education International आवश्यक नियुक्ति अवधिज्ञानी की मनोद्रव्य, कर्मद्रव्य, तैजस-कर्मशरीर, तैजसद्रव्य, भाषाद्रव्य आदि को जानने की इयत्ता | परमावधिज्ञान का विषयक्षेत्र । तिर्यग्योनि के अवधिज्ञान का स्वरूप । नारक के अवधिज्ञान का क्षेत्र । देवताओं के अवधिज्ञान का क्षेत्र । उत्कृष्ट एवं जघन्य अवधिज्ञान के स्वामी । अवधिज्ञान के संस्थान । आनुगामिक अवधिज्ञान के स्वामी । अवधिज्ञान की स्थिति । क्षेत्र, काल की वृद्धि-हानि के चार, द्रव्य की वृद्धि हानि के दो तथा पर्याय की वृद्धि हानि के छह प्रकार । स्पर्धकों के आधार पर अवधिज्ञान की तीव्रता - मंदता । अवधिज्ञान का उत्पाद और प्रतिपात । द्रव्य और पर्याय का उत्पाद और प्रतिपात । देवताओं में अवधि और विभंग की स्थिति । नारक, देव और तीर्थंकरों के अवधिज्ञान की एकरूपता । अवधिज्ञान का क्षेत्र | गति द्वार के अवयवों के प्रतिपादन का संकेत तथा अवधिज्ञान एक लब्धि का निरूपण । आमषैौषधि आदि लब्धियों के नामोल्लेख | वासुदेव के बल का उदाहरण । चक्रवर्ती के बल का उदाहरण । तीर्थंकरों के बल का निरूपण । मनः पर्यवज्ञान का स्वरूप । केवलज्ञान का स्वरूप । तीर्थंकरों की देशना वाग्योग द्वारा । प्रस्तुत प्रसंग में श्रुतज्ञान के अधिकार का निर्देश । उपोद्घात निर्युक्ति के छब्बीस द्वार । तीर्थंकर, गणधर आदि की स्तुति । नियुक्ति - कथन की प्रतिज्ञा । दस आगमों की नियुक्ति करने की प्रतिज्ञा । आवश्यक निर्युक्ति कथन की प्रतिज्ञा । निर्युक्ति का स्वरूप । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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