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आवश्यक नियुक्ति
८३. ८४, ८५.
८६.
८७
८८-९०. ९१-९३. ९४. ९५, ९६.
९७.
९८. ९९, १००. १००/१. १०१. १०२. १०३. १०४. १०५.
तीर्थंकरों द्वारा ज्ञानवृष्टि का उल्लेख। गणधर द्वारा जिनवाणी का संग्रथन। सूत्र और अर्थ के संग्रथन का प्रयोजन । श्रुतज्ञान और चारित्र का सार। तप-संयम के बिना केवल श्रुतज्ञान से मोक्ष नहीं, पोत और नाविक का दृष्टान्त। चारित्र की गुरुता का प्रतिपादन। चारित्रविकल ज्ञानी को चंदन भारवाही गधे की उपमा। ज्ञान और क्रिया के समन्वय में अंधे और पंगु का दृष्टान्त। ज्ञान, तप और संयम द्वारा मोक्षप्राप्ति। श्रुतज्ञान क्षायोपशमिकभाव तथा केवलज्ञान क्षायिकभाव। सामायिक की प्राप्ति-अप्राप्ति में कर्मों की प्रकृतियों की स्थिति । सामायिक की उपलब्धि के नौ दृष्टान्त। अनंतानुबंधी कषायोदय से सम्यक्त्व की अप्राप्ति । अप्रत्याख्यानावरण से देशविरति की अप्राप्ति । प्रत्याख्यानावरण के उदय से सर्वविरति की अप्राप्ति। संज्वलन कषायोदय से यथाख्यात चारित्र की अप्राप्ति। सभी अतिचारों का घटक-संज्वलन कषाय । चारित्र-प्राप्ति के मूलभूत तत्त्व। सामायिक आदि छह चारित्रों का नामोल्लेख एवं उनकी फलश्रुति। प्रकृतियों के उपशम का क्रम। सूक्ष्म संपराय की अवस्था। उपशान्त कषाय वाले का प्रतिपात। ऋण, व्रण आदि अल्प होने पर भी महान् अनर्थकारी। क्षपक श्रेणी में कर्म प्रकतियों के क्षय का क्रम। केवली के ज्ञान का माहात्म्य। जिन-प्रवचन की उत्पत्ति आदि के कथन की प्रतिज्ञा। प्रवचन तथा श्रुत के एकार्थक। अनुयोग के एकार्थक। अनुयोग के निक्षेप। द्रव्य अनुयोग एवं अननुयोग के सात दृष्टान्त। भाव अनुयोग एवं अननुयोग के सात दृष्टान्त। भाषक, विभाषक व्यक्तिकरण आदि के उदाहरण। आचार्य और शिष्य से सम्बन्धित व्याख्यानविधि के सात उदाहरण।
१०६.
१०७, १०८. १०९. ११०. ११०/१,२. ११०/३. १११-१११/५
११२. ११३.
११४,११५.
११६.
११७. ११८. ११९.
१२०.
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