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________________ १. २. ३. ४. ५. ६. ७, ८. ९. १०, ११. १२. १३. १४, १५. १६. १७. १८, १९. २०. २१. २२. २२/१. २२/२. गाथाओं का विषयानुक्रम ज्ञान के द आभिनिबोधिक/ मतिज्ञान के भेद । अवग्रह, ईहा आदि का स्वरूप । अवग्रह, ईहा आदि का समय । प्राप्य तथा अप्राप्य इंद्रियों के नाम । शब्द-श्रवण का नियम । भाषा वर्गणा के पुद्गलों के ग्रहण एवं विसर्जन का नियम भाषा वर्गणा के ग्रहण के साधन-तीन शरीर । शब्द की गति और व्याप्ति का समय । मतिज्ञान के एकार्थक | नौ अनुयोगद्वार के नाम | मतिज्ञान को समग्रता से जानने के लिए गति आदि २० द्वारों का कथन । मतिज्ञान की २८ प्रकृतियां । ३४. ३५. ३६. ३७, ३८. ३९. श्रुतज्ञान की प्रकृतियों का संकेत । श्रुतज्ञान के चौदह भेदों के नाम । अनक्षरश्रुत का स्वरूप । श्रुतज्ञान की प्राप्ति का अधिकारी । बुद्धि के आठ गुण | श्रवणविधि का प्रतिपादन । व्याख्यानविधि का विवेचन । २३. अवधिज्ञान की असंख्य प्रकृतियां एवं उसके दो भेद । २४-२६. अवधिज्ञान की व्याख्या के चौदह द्वारों का नामोल्लेख । अवधिज्ञान के सात निक्षेप । अवधिज्ञान का जघन्य क्षेत्र । परमावधि ज्ञान का क्षेत्रनिर्देश । २७. २८. २९. ३०-३३. अवधिज्ञान का मध्यमक्षेत्र | अवधिज्ञान के द्रव्य, क्षेत्र आदि की वृद्धि - अवृद्धि की समीक्षा । काल की अपेक्षा क्षेत्र की सूक्ष्मता का निर्देश । अवधिज्ञान के परिच्छेद योग्य द्रव्य का निर्देश । जघन्य अवधि के प्रमेय के उपचय का निर्देश औदारिक आदि द्रव्यों की गुरु-लघुता एवं अगुरु-लघुता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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