Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आवश्यक निर्युक्ति
जहां गाथा में कथा का संकेत नहीं है लेकिन चूर्णि एवं टीका में यदि कथाएं हैं तो उन कथाओं का अनुवाद भी हमने परिशिष्ट में दे दिया है। ऐसी कथाओं के अनुवाद के नीचे पादटिप्पण में गाथा - संख्या का संकेत दे दिया है, जिससे ज्ञात हो जाए कि किस गाथा की व्याख्या में चूर्णिकार एवं टीकाकार ने कथाओं का उल्लेख किया है।
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संपादन में प्रयुक्त हस्तप्रतियों का परिचय
पाठ-संपादन में हमने निम्न हस्तप्रतियों को आधार बनाया है लेकिन व्याख्या ग्रंथों में प्रकाशित गाथाओं के पाठ को भी ध्यान में रखा है।
(अ) यह प्रति लाडनूं जैन विश्व भारती पुस्तकालय से प्राप्त है। इसकी लम्बाई २७ सेमी. और चौड़ाई ११ सेमी. है। इसकी पत्र संख्या ५८ है । यह प्रति साफ-सुथरी है। इसके अंत में पच्चक्खाणनिज्जुत्ती समाप्ता चेयं आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति ऐसा उल्लेख मिलता है। इसमें समय का कोई उल्लेख नहीं है किन्तु यह प्रति पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी की होनी चाहिए ।
(ब) यह सरदारशहर गधैया पुस्तकालय से प्राप्त है। यह २५.८ सेमी. लम्बी और ११.२ सेमी. चौड़ी है। इसमें ४४ पत्र हैं । यह प्रति बीच में ही समाप्त हो जाती है। अंतिम २1⁄2 गाथाएं इसमें लिखी हुई नहीं हैं। संभव है पत्र समाप्त होने के कारण लिपिकार ने ये अंतिम गाथाएं नहीं लिखी हैं। यह प्रति भी साफ सुथरी है, अक्षर स्पष्ट हैं। इसमें बीच-बीच में भाष्य गाथा तथा अन्यकर्तृकी गाथाओं का उल्लेख भी लिपिकार ने किया है। इसके दोनों किनारों तथा हासिए में लाल बिन्दु हैं।
(स) यह सरदारशहर गधैया पुस्तकालय से प्राप्त है । यह २६ सेमी. लम्बी और ११.२ सेमी. चौड़ी है। इसमें ५७ पत्र हैं। प्रति के अंत में “श्रीमदावश्यकं समाप्तमिति १४९४ वर्षे चैत्रमासे शुक्ले पक्षे पंचम्याम् रोहिण्याम् श्रीपत्तननगरे लिलिखातं । शुभम् भवतु श्रीचुर्तविधसंघक्षमम् भूयात् ॥ श्री त्रिणवेकंठ लिखितः ॥ " यह प्रति बहुत साफ-सुथरी है। अक्षर स्पष्ट हैं तथा दोनों ओर हासिया है। इस प्रति में भाष्य एवं अन्य अनेक अन्यकर्तृकी गाथाओं का भी समावेश है किन्तु लिपिकार ने इसका कहीं भी संकेत नहीं किया है।
(रा) यह प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान से प्राप्त है। यह २६.५ सेमी. लम्बी और ११ सेमी. चौड़ी है। इसकी पत्र संख्या ४३ है । यह प्रति साफ सुथरी है तथा इसके अक्षर बहुत छोटे-छोटे हैं । प्रति के अंत में पच्चक्खाणनिज्जुत्ती सम्मत्ता । आवस्सयं सम्मत्तं । संवत् १४८४ आश्विन सुदि ६ शुक्रे धवलके लिखितं ऐसा उल्लेख मिलता है।
(ला) यह प्रति लाडनूं जैन विश्व भारती से प्राप्त है । यह २६.५ सेमी. लम्बी और ९.६ सेमी. चौड़ी है। इसकी पत्र संख्या ५७ है। यह प्रति अपूर्ण है। इसकी क्रमांक संख्या १२८९ है । यह प्रति स्पष्ट तथा सुंदर है। आवश्यक निर्युक्ति की लगभग प्रतियों में अन्यकर्तृकी गाथाओं का समावेश है। संभवतः अन्यकर्तृकी गाथाओं का इतना समावेश इसी निर्युक्ति की प्रतियों में मिलता है।
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