Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भूमिका
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की क्रमबद्धता के आधार पर रखा है। जैसे १६४, १६५ – इन दोनों गाथाओं में हा, म, दी में क्रमव्यत्यय है। हस्त प्रतियों में भी यही क्रम मिलता है। लेकिन हमें भाष्य का क्रम अधिक संगत लगा अतः उसी क्रम को स्वीकार किया। कहीं-कहीं हमने भाष्य के क्रम को स्वीकार न करके टीका और चूर्णि के क्रम को भी स्वीकार किया है । देखें गाथा १९४ और १९८ का टिप्पण
कथाओं में कहीं-कहीं चूर्णि और टीका के नामों में अंतर है। जैसे चूर्णि में कमलामेला की कथा में उग्रसेन के पौत्र धनदेव से कमलामेला की सगाई हुई जबकि टीका में उग्रसेन के पुत्र नभसेन से उसकी सगाई हुई है। देखें कथा सं. १८ ।
हमने पादटिप्पण में लगभग कोट्याचार्य कृत टीका एवं स्वोपज्ञ टीका वाले भाष्य के बारे में ही अधिक विमर्श किया है क्योंकि उन दोनों में भाष्य के साथ नियुक्ति संख्या अलग से लगायी हुई हैं । महेटी वाले भाष्य में बीच की सैंकड़ों गाथाएं नहीं हैं साथ ही उसमें निर्युक्ति की संख्या का भी अलग से उल्लेख नहीं है।
• एक गाथा के स्थान पर दूसरे व्याख्या ग्रंथ में जहां दूसरी या उसके स्थान पर दो तीन उसी की संवादी गाथाएं मिली हैं, उनको हमने निर्युक्ति गाथा के क्रम में तो रखा है पर नियुक्ति क्रमांक के साथ नहीं जोड़ा। उन गाथाओं को नीचे पादटिप्पण में देने से वे अनुक्रमणिका के क्रमांक में नहीं आ सकती थीं। जैसे आलभिय हरि (गा. ३३०) गाथा को मूल क्रमांक में रखा है तथा आलभियाय हरि तथा हरिसह सेयवियाए— ये दो गाथाएं ३३० / १, २ क्रमांक में हैं।
प्रकाशित मलधारी हेमचन्द्र कृत टीका वाले भाष्य में निर्युक्ति गाथा के क्रमांक अलग से लगाए हुए नहीं हैं। टीकाकार ने लगभग गाथाओं के बारे में 'निर्युक्तिगाथासमासार्थः, निर्युक्तिगाथार्थः ' आदि का उल्लेख किया है। कहीं-कहीं एनां भाष्यकारो विस्तरतः स्वयमेव व्याख्यास्यति आदि का भी उल्लेख है। इसी आधार पर जहां निर्युक्ति का संकेत है, वहां गाथाओं का समीकरण परिशिष्ट में भाष्यगाथा के क्रमांक के आगे / चिह्न कर दिया है। निर्युक्ति गाथा का संकेत न होने पर केवल गाथा मिलती है, वहां भाष्यगाथा के क्रमांक के आगे ० का संकेत कर दिया है। यदि गाथा अनुपलब्ध है तो x के चिह्न से दर्शाया है।
कथाओं में महावीर से संबंधित जीवन घटनाओं में नीचे टिप्पण में कथाओं का संकेत अनेक स्थलों पर है लेकिन पीछे कथाओं में हमने उतने शीर्षक न बनाकर कम शीर्षकों में ही उन घटनाओं का समाहार कर दिया है। जैसे गोशालक से संबंधित अनेक घटना-प्रसंगों को तीन चार शीर्षकों में ही समाहित कर दिया है।
प्राचीनता की दृष्टि से चूर्णि प्राचीन है लेकिन हमने कथा के अनुवाद का मुख्य आधार हारिभद्रीय टीका को बनाया है। कहीं-कहीं जो कथा टीका में स्पष्ट नहीं है, उनका अनुवाद चूर्णि एवं मलयगिरि टीका से भी किया है । औत्पत्तिकी आदि बुद्धि से सम्बन्धित कथाएं मलयगिरि टीका में विस्तार से हैं अतः अनुवाद के समय उसको भी सामने रखा है। भगवान् ऋषभ, भरत एवं महावीर से संबंधित अनेक प्रसंग चूर्ण से भी अनूदित किए हैं। इसी प्रकार सर्वांगसुंदरी कथा सं. (१२६) तथा शुक कथा सं. (१२७) आदि की कथाओं का अनुवाद आचार्य मलयगिरि की टीका एवं चूर्णि से किया है। कुछ कथाएं केवल दीपिका में स्पष्ट थीं उनका हमने दीपिका के आधार पर भी अनुवाद किया है, जैसे - कथा सं. १८१ ।
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