Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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डाली पर वह दृढ़चेता उपासक तिलमात्र भी विचलित नहीं हुआ। यद्यपि यह देव की विक्रियाजन्य माया थी पर कामदेव को तो यथार्थ भासित हो रही थी। मनुष्य किसी भी कार्य में तब तक सुदृढ रह सकता है, जब तक उसके सामने मौत का भय न आए। पर, कामदेव ने दैहिक विध्वंस की परवाह नहीं की। तब देव ने उसके हृदय के कोमलतम अंश का संस्पर्श किया। पिता को पत्रों से बहुत प्यार होता है। जिनके पुत्र नहीं होता, वे उसके लिए तड़फते रहते हैं । कामदेव के सामने उसके देखते-देखते तीनों पुत्रों की हत्या कर दी गई पर वह आत्मबली साधक निष्प्रकम्प रहा। तभी तो भगवान् महावीर ने साधुसाध्वियों के समक्ष एक उदाहरण के रूप में उसे प्रस्तुत किया। जो भीषण विघ्न-बाधाओं के बावजूद धर्म में सुदृढ बना रहता है, वह निश्चय ही औरों के लिए आदर्श है।
तीसरे अध्ययन में चुलनीपिता का प्रसंग है। चुलनीपिता को भी ऐसे ही विघ्न का सामना करना पड़ा। पुत्रों की हत्या से तो वह अविचल रहा पर देव ने जब उसकी पूजनीया माँ की हत्या की धमकी दी तो वह विचलित हो गया। माँ के प्रति रही अपनी ममता वह जीत नहीं सका। वह तो अध्यात्म की ऊँची साधना में था, जहाँ ऐसी ममता बाधा नहीं बननी चाहिए, पर बनी। चुलनीपिता भूल का प्रायश्चित्त कर शुद्ध हुआ।
चौथे अध्ययन में श्रमणोपासक सुरादेव का कथानक है। उनकी साधना में भी विघ्न आया। पुत्रों की हत्या से उपसर्गकारी देव ने जब उसे अप्रभावित देखा तो उसने शरीर में भीषण सोलह रोग उत्पन्न कर देने की धमकी दी। मनुष्य मौत को स्वीकार कर सकता है, पर अत्यन्त भयानक रोगों से जर्जर देह उसके लिए मौत से कहीं अधिक भयावह बन जाती है, सुरादेव के साथ भी यही घटित हुआ। उसका व्रत भग्न हो गया। उसने आत्म-परिष्कार किया।
पांचवे अध्ययन में चुल्लशतक सम्पत्ति-नाश की धमकी से व्रत-च्युत हुआ। कुछ लोगों के लिए धन पुत्र, माता, प्राण-इन सबसे प्यारा होता है। वे और सब सह लेते हैं पर धन के विनाश की आशंका उन्हें अत्यन्त आतुर तथा आकुल बना देती है। चुल्लशतक तीनों पुत्रों की हत्या तक चुप रहा पर आलभिका [नगरी] की गली-गली में उसकी सम्पत्ति बिखेर देने की बात से वह कांप गया।
सातवें अध्ययन में सकडालपुत्र का कथानक है। वह भी पुत्रों की हत्या तक तो अविचल रहा पर उसकी पत्नी अग्निमित्रा जो न केवल गृहस्वामिनी थी, उसके धार्मिक जीवन में अनन्य सहयोगिनी भी थी, की हत्या की धमकी जब सामने आई तो वह हिम्मत छोड़ बैठा।
यहाँ एक बात विशेष महत्त्वपूर्ण है। व्यक्ति अपने मन में रही किसी दुर्बलता के कारण एक बार स्थानच्युत होकर पुनः आत्मपरिष्कार कर, प्रायश्चित कर, शुद्ध होकर ध्येयनिष्ठ बन जाय तो वह भूल फिर नहीं रहती। भूल होना असंभव नहीं है पर भूल हो जाने पर उसे समझ लेना, उसके लिए अन्तर-खेद अनुभव करना, फिर अपने स्वीकृत साधना-पथ पर गतिमान् हो जाना-यह व्या उच्चता का चिह्न है । छओं उपासकों के भूल के प्रसंग इसी प्रकार के हैं । जीवन में अवशिष्ट रही ममता, आसक्ति आदि के कारण उनमें विचलन तो आया पर वह टिक नहीं पाया।
__ आठवें अध्ययन में श्रमणोपासक महाशतक के सामने एक विचित्र अनुकूल विघ्न आता है। उसकी प्रमुख पत्नी रेवती, जो घोर मद्य-मांस-लोलुपता-और कामुक थी, पोषधशाला में पोषध और
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