Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : गाथापति आनन्द]
[५३ तरह के वाहनों से है। ऐसे वाहनोंको, उनके भागों या कल-पुों को तैयार करना, बेचना आदि शकटकर्म में शामिल है। आज की स्थिति में रेल, मोटर, स्कूटर, साईकिल, ट्रक, ट्रैक्टर आदि बनाने के कारखानेभी इसमें आ जाते है।
भाटीकर्म-भाटी का अर्थ भाड़ा है। बैल, घोड़ा, भैंसा, खच्चर आदि को भाड़े पर देने का व्यापार।
स्फोटनकर्म--स्फोटन का अर्थ फोड़ना, तोड़ना या खोदना है। खानें खोदने, पत्थर फोड़ने, कुए, तालाब तथा बावड़ी आदि खोदने का धन्धा स्फोटन-कर्म में आते है।
दन्तवाणिज्य-हाथी दांत का व्यापार इसका मुख्य अर्थ है । वैसे हड्डी, चमड़े आदि का व्यापार भी उपलक्षण से यहाँ ग्रहण कर लिया जाना चाहिए।
लाक्षावाणिज्य--लाख का व्यापार ।
रसवाणिज्य--मदिरा आदि मादक रसों का व्यापार । वैसे रस शब्द सामान्यतः ईख एवं फलों के रस के लिए भी प्रयुक्त होता है, किन्तु यहाँ वह अर्थ नहीं है।
शहद, मांस, चर्बी, मक्खन, दूध, दही, घी, तैल आदि के व्यापार को भी कई आचार्यों ने रसवाणिज्य में ग्रहण किया है।
विषवाणिज्य--तरह-तरह के विषों का व्यापार । तलवार, छुरा, कटार, बन्दूक, धनुष, बाण, बारूद, पटाखे आदि हिंसक व घातक वस्तुओं का व्यापार भी विषवाणिज्य के अन्तर्गत लिया जाता है।
केशवाणिज्य--यहाँ प्रयुक्त केश शब्द लाक्षणिक है। केश-वाणिज्य का अर्थ दास, दासी, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँट, घोड़े आदि जीवित प्राणियों की खरीद-बिक्री आदि का धन्धा है। कुछ आचार्यों ने चमरी गाय की पूंछ के बालों के व्यापार को भी इसमें शामिल किया है। इनके चवर बनते है। मोर-पंख तथा ऊन प्राप्त करने में ऐसा नहीं है। मारे जाने के कारण को लेकर चमरी गाय के बालों का व्यापार इसमें लिया गया है।
यंत्रपीडनकर्म--तिल, सरसों, तारामीरा, तोरिया, मूंगफली आदि तिलहनों से कोल्हू या घाणी द्वारा तैल निकालने का व्यवसाय।
निलांछनकर्म--बैल, भैंसे आदि को नपुंसक बनाने का व्यवसाय।
दवाग्निदापन--वन में आग लगाने का धन्धा। यह आग अत्यन्त भयानक और अनियंत्रित होती है। उससे जंगल के अनेक जंगम-स्थावर प्राणियों का भीषण संहार होता है।
सरहदतडागशोषण--सरोवर, झील, तालाब आदि जल-स्थानों को सुखाना।
असती-जन-पोषण--व्यभिचार के लिए वेश्या आदि का पोषण करना, उन्हें नियुक्त करना। श्रावक के लिए वास्तव में निन्दनीय कार्य है। इससे समाज में दुश्चरित्रता फैलती है, व्यभिचार को बल मिलता है।