Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[उपासकदशांगसूत्र पॉलिश देने हेतु जुलाहों द्वारा प्रयोग में लिये जाने वाले मांड के बर्तन के समान गहरी थी। उसका नेत्रलिंग छींके की तरह लटक-रहा था। दोनों अण्डकोष फैले हुए दो थैलों या बोरियों जैसे थे। उसकी दोनों जंघाएं एक जैसी दो कोठियों के समान थीं। उसके घुटने अर्जुन-तृण-विशेष या वृक्ष-विशेष के गुढे-स्तम्ब-गुल्म या गांठ जैसे, टेढे, देखने में विकृत व बीभत्स थे। पिंडलियां कठोर थीं, बालों से भरी थीं। उसके दोनों पैर दाल आदि पीसने की शिला के समान थे। पैर की अंगुलियां लोढ़ी जैसी थीं। अंगुलियों के नाखून सीपियों के सदृश थे।
९५. लडहमडहजाणए, विगय-भग्ग-भुग्ग-भुमए, अवदालिय-वयणविवरनिल्लालियग्ग-जीहे, सरडकयमालियाए, उंदुरमाला-परिणद्धसुकय-चिंधे, नउलकयकण्णपूरे, सप्पकयवेगच्छे, अप्फोडते, अभिगजंते, भीममुक्कट्टहासे, नाणाविहपंचवण्णेहिं लोमेहिं उवचिए एगं महं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं असिं खुर-धारं गहाय, जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसु-रत्ते, रूठे, कुविए, चंडिक्किए, मिसिमिसियमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी--हंभो कामदेवा! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया! दुरंतपंत लक्खणा! हीण-पुण्ण-चाउद्दसिया! हिरि-सिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्म-कामया! पुण्ण-कामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकं खिया! पुण्णकं खिया! सग्ग-कं खिया! मोक्खकं खिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया! जं सीलाइं, वयाइं, वेरमणाई, पच्चक्खाणाइं, पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा, खंडित्तए वा, भंजित्तए वा, उज्झित्तए वा, परिच्चइत्तए वा। तं जइ णं तुमं अज सीलाइं, जाव (वयाइं, वेरमणाई, पच्चक्खाणाइं) पोसहोववसाइं न छड्डेसि, न भंजेसि, तो तं अहं अज इमेणं नीलुप्पल-जाव (गवल-गुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासेण, खुरधारेण) असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया! अट्टदुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।
उस पिशाच के घुटने मोटे एवं ओछे थे, गाड़ी के पीछे ढीले बंधे काठ की तरह लड़खड़ा रहे थे। उसकी भोहें विकृत--बेडौल, भग्न-खण्डित, भुग्न--कुटिल या टेड़ी थीं। उसने अपना दरार जैसा मुंह फाड़ रखा था, जीभ बाहर निकाल रखी थी। वह गिरगिटों की माला पहने था। चूहों की माला भी उसने धारण कर रखी थी जो उसकी पहचान थी। उसके कानों में कुण्डलों के स्थान पर नेवले लटक रहे थे। उसने अपनी देह पर सांपों को दुपट्टे की तरह लपेट रखा था। वह भुजाओं पर अपने हाथ ठोक रहा था, गरज रहा था, भयंकर अट्टहास कर रहा था। उसका शरीर पांचों रंगों के बहुविध केशों से व्याप्त
था।
वह पिशाच नीले कमल, भैंसे के सींग तथा अलसी के फूलों जैसी गहरी नीली, तेज धार वाली तलवार लिये, जहाँ पोषधशाला थी, श्रमणोपासक कामदेव था, वहां आया। आकर अत्यन्त क्रुद्ध