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पांचवां अध्ययन : चुल्लशतक] एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे।
१६१. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ।
___ उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुल्लशतक निर्भीकतापूर्वक अपनी उपासना में लगा रहा।
१६२. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तहेव भणइ, जाव ववरोविज्जसि।
जब उस देव ने श्रमणोपासक चुल्लशतक को यों निर्भीक देखा तो उससे दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा और धमकाया-अरे ! प्राण खो बैठोगे! विचलनः प्रायश्चित्त
१६३. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूबे अज्झथिए ४ अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जहा चुलणीपिया तहा. चिंतेइ जाव कणीयसं जाव आयंचइ, जाओ वि य णं इमाओ ममं छ हिरण्णकोडीओ निहाण-पउत्ताओ, छ वड्ढ-पउत्ताओ, छ पवित्थर-पउत्ताओ, ताओ वि य णं इच्छइ ममं साओ गिहाओ नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाइए, जहा सुरादेवो।तहेव भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ।
उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार श्रमणोपासक चुल्लशतक को ऐसा कहा, तो उसके मन में चुलनीपिता की तरह विचार आया, इस अधम पुरूष ने मेरे बड़े , मंझले और छोटे--तीनों पुत्रों को बारी-बारी से मार कर, उनके मांस और रक्त से सींचा। अब यह मेरी खजाने में रखी छह करोड़ स्वर्णमुद्राओं, व्यापार में लगी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं तथा घर का वैभव एवं साज-सामान में लगी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं को निकाल लाना चाहता है और उन्हें आलभिका नगरी के तिकोने आदि स्थानों में बिखेर देना चाहता है। इसलिए, मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरूष को पकड़ लूं। यों सोचकर वह उसे पकड़ने के लिए सुरादेव की तरह दौड़ा।
आगे वैसा ही घटित हुआ, जैसा सुरादेव के साथ घटित हुआ था। सुरादेव की पत्नी की तरह
१. देखें सूत्र-संख्या १५३ । २. देखें सूत्र-संख्या ९७। ३. देखें सूत्र-संख्या १५४। ४. देखें सूत्र-संख्या १५४। ५. देखें सूत्र-संख्या १६० ।