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छठा अध्ययन : कुंडकौलिक]
[१४५ भगवान् महावीर को पराभूत नहीं कर सकी। वापस लौटी, गोशालक की देह में प्रविष्ट हो गई। गोशालक पित्तज्वर और घोर दाह से युक्त हो सात दिन बाद मर गया।
भगवती में आए वर्णन का यह अतिसंक्षिप्त सारांश है।
प्रस्तुत प्रसंग में आई कुंडकौलिक की घटना तब की है, जब गोशालक भगवान् महावीर से पृथक् था तथा अपने को अर्हत्, जिन, केवली कहता हुआ जनपद विहार करता था। कुंडकौलिक का प्रश्न
१६९. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवा! सुन्दरी गोसालस्स मंखलि-पुत्तस्स धम्म-पण्णत्ती--नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव (कम्मे इ वा, बले इ वा, वीरिए इ वा, पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा), नियया सव्व-भावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उट्ठाणे इ वा जाव' अणियया सव्व-भावा। तुमे णं देवा! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी, दिव्वा देव-ज्जुई, दिव्वे देवाणुभावे किणा लद्धे, किणा पत्ते, किणा अभिसमण्णागए? कि उट्ठाणेणं जाव (कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं) पुरिसक्कारपरक्कमेणं? उदाहु अणुट्ठाणेण जाव (अकम्मेण, अबलेणं, अवीरिएणं) अपुरिसक्कारपरक्कमेणं?
तब श्रमणोपासक कुंडकौलिक ने देव से कहा--उत्थान, (कर्म, बल, वीर्य, पौरूष एवं पराक्रम) का कोई अस्तित्व नहीं है, सभी भाव नियत है -गोशालक की यह धर्म-शिक्षा यदि उत्तम है
और उत्थान आदि का अपना महत्त्व है, सभी भाव नियत नहीं है--भगवान् महावीर की यह धर्मप्ररूपणा अनुत्तम है--अच्छी नहीं है, तो देव! तुम्हें जो ऐसी दिव्य ऋद्धि, द्युति तथा प्रभाव उपलब्ध, संप्राप्त और स्वायत्त है, वह सब क्या उत्थान, (कर्म, बल, वीर्य), पौरूष और पराक्रम से प्राप्त हुआ है अथवा अनुत्थान, अकर्म, अबल, अवीर्य, अपौरूष या अपराक्रम से? अर्थात् कर्म बल आदि का उपयोग न करने से ये मिले है? देव का उत्तर
१७०. तए णं से देवे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! मए इमेयारूवा दिव्वा देविड्डी ३ अणुट्ठाणेणं जाव' अपुरिसक्कारपरक्कमेण लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया।
__ वह देव श्रमणोपासक कुंडकौलिक से बोला-देवानुप्रिय! मुझे यह दिव्य ऋद्धि, द्युति एवं प्रभाव-यह सब बिना उत्थान, पौरूष एवं पराक्रम से ही उपलब्ध हुआ है। कुंडकौलिक द्वारा प्रत्युत्तर
१. देखें सूत्र-संख्या १६८। २. देखें सूत्र-संख्या १६९ ।