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दसवां अध्ययन
सालिहीपिता गाथापति सालिहीपिता
२७३. दसमस्स उक्खेवो'। एवं खल जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया।
तत्थ णं साबत्थीए नयरीए सालिहीपिया नाम गाहावई परिवसइ, अड्डे दित्ते। चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ वड्डि-पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थर-पउत्ताओ, चत्तारि वया, दस-गो-साहस्सिएणं वएणं। फग्गुणी भारिया।
उत्क्षेप'-उपोद्घातपूर्वक दसवें अध्ययन का प्रारम्भ यों है
जम्बू! उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विद्यमान थे, श्रावस्ती नामक नगरी थी, कोष्ठक नामक चैत्य था। जितशत्रु वहां का राजा था।
श्रावस्ती नगरी में सालिहीपिता नामक एक धनाढ्य एवं दीप्त-दीप्तिमान्-प्रभावशाली गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं घर के वैभव-साधन-सामग्री में लगी थीं। उसके चार गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम फाल्गुनी था। सफल साधना
२७४. सामी समोसढे। जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। जहा कामदेवो तहा जेटुं पुत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्म-पण्णत्तिं उवसंपजित्ताणं विहरइ। मवरं निरूवसग्गाओ एक्कारस वि उवासग-पडिमाओ तहेव भाणियव्वाओ, एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे कप्पे अरूणकीले विमाणे देवत्ताए उववन्ने। चत्तारि पलिओवमाइं ठिई। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। १. जइ णं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासगदसाणं नवमस्स अज्झयणस अयमढे पण्णत्ते, दसमस्स
णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते? २. आर्य सुधर्मा से जम्बू ने पूछा-सिद्धिप्राप्त महावीर ने उपाासकदशा के नवमे अध्ययन का यदि वह अर्थ-भाव
प्रतिपादित किया, तो भगवन् ! उन्होनें दसवें अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया? (कृपया कहें)