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संग्रह - गाथाओं का विवरण]
भूमि रत्नप्रभा में लोलुपाच्युत नामक स्थान तक।
प्रत्येक श्रमणोपासक ने ११-११ प्रतिमाएं स्वीकार की थी, जो निम्नांकित हैं-
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१. दर्शन - प्रतिमा, २ . व्रत - प्रतिमा, ३. सामायिक प्रतिमा, ४. पोषध - प्रतिमा, ५. कायोत्सर्ग-प्रतिमा, ६. ब्रह्मचर्य-प्रतिमा, ७. सचित्ताहार वर्जन - प्रतिमा, ८. स्वयं आरम्भ - वर्जन - प्रतिमा, ९ भृतक - प्रेष्यारम्भवर्जन - प्रतिमा, १०. उद्दिष्ट - भक्त - वर्जन - प्रतिमा, ११. श्रमणभूत- प्रतिमा ।
इन सभी श्रमणोपासक ने २०-२० वर्ष तक श्रावक-धर्म का पालन किया, अन्त में एक महीने की संलेखना तथा अनशन द्वारा देह त्याग किया, सौधर्म देवलोक में चार-चार पल्योपम की आयु वाले देवों के रूप में उत्पन्न हुए। देव भव के अनन्तर सभी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे, मोक्ष-लाभ करेंगे।
॥ उपाशकदशा समाप्त ॥
१. महाशतक के अवधिज्ञान के विस्तार का गाथा में उल्लेख नहीं हैं।