Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 199
________________ १५८] [उपासकदशांगसूत्र जिसके मन, वचन तथा शरीर से दुष्कृत कर्म या पाप नहीं होते, जो इन तीनों ही स्थानों से संवृत-संयम युक्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं। जो फटे-पुराने चिथड़ों को धारण किए रहता है, कृश है, उग्र तपश्चरण द्वारा जिसकी देह पर नाड़ियां उभर आई है , एकाकी वन में ध्यान-निरत रहता है, मेरी दृष्टि में वही ब्राह्मण है। जो सभी संयोजनों-बन्धनों को छिन्न कर डालता है, जो कहीं भी परित्रास-भय नहीं पाता, जो आसक्ति और ममता से अतीत है , मैं उसी को ब्राह्मण कहता हूँ। जो आक्रोश-क्रोध या गाली-गलौच, वध एवं बन्धन को, मन को जरा भी विकृत किए बिना सह जाता है, क्षमा-बल ही जिसकी बलवान् सेना है, वास्तव में वही ब्राह्मण है। जो क्रोध-रहित, व्रतयुक्त, शीलवान् बहु श्रुत, संयमानुरत तथा अन्तिम शरीरवान् है-शरीर त्याग कर निवाणगामी है, वही वास्तव में ब्राह्मण है। जो कमल के पत्ते पर पड़े जल और आरे की नोक पर पड़ी सरसों की तरह भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसी को ब्राह्मण कहता हूं। जो गम्भीर-प्रज्ञाशील, मेधावी एवं मार्ग-अमार्ग का ज्ञाता है, जिसने उत्तम अर्थ-सत्य को प्राप्त कर लिया है, वही वास्तव में ब्राह्मण है। जो त्रस और स्थावर-चर-अचर सभी प्राणियों की हिंसा से विरत है, न स्वयं उन्हें मारता है, न मारने की प्रेरणा करता है, मैं उसी को ब्राह्मण कहता हूँ।'' उत्तराध्ययन तथा धम्मपद के प्रस्तुत विवेचन की तुलना करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ही स्थानों पर ब्राह्मण के तपोमय, ज्ञानमय तथा शीलमय व्यक्तित्व के विश्लेषण में दृष्टिकोण की समानता रही हैं। गुण-निप्पन्न ब्राह्मणत्व के विवेचन में वैदिक वाङ्मय में भी हमें अनेक स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं । महाभारत के शान्तिपर्व में इस सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न प्रसंगों में विवेचन हुआ है। ब्राह्मणवेत्ता ब्राह्मण का लक्षण बताते हुए एक स्थान पर कहा गया है-- ब्राह्मण गन्ध, रस विषय-सुख एवं आभूषणों की कामना न करे। वह सम्मान, कीर्ति तथा यश की चाह न रखे। द्रष्टा ब्राह्मण का यही आचार है। ____ जो समस्त प्राणियों को अपने कुटुम्ब की भांति समझता है, जानने योग्य तत्त्व का ज्ञाता होता है, कामनाओं से वर्जित होता है, वह ब्राह्मण कभी मरता नहीं अर्थात् जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाता है। जब मन, वाणी और कर्म द्वारा किसी भी प्राणी के प्रति विकारयुक्त भाव नहीं करता, तभी व्यक्ति ब्रह्मभाव या ब्राह्मणत्व प्राप्त करता है। कामना ही इस संसार में एकमात्र बन्धन है, अन्य कोई बन्धन नहीं है । जो कामना के बन्धन १. धम्मपद ब्राह्मणवग्गो ३, ८, ९, १३, १५, १७, १८,१९, २१, २३ ।

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