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आठवां अध्ययन
महारातक
श्रमणोपासक महाशतक
२३१. अट्ठमस्स उक्खेवओ'। एवं खलु, जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायग नय गुणसीले चेइए। सेणिए राया ।
उत्क्षेप' - उपोद्घातपूर्वक आठवें अध्ययन का प्रारम्भ यों है-
आर्य सुधर्मा ने कहा- जम्बू ! उस काल - वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विद्यमान थे, राजगृह नामक नगर था । नगर के बाहर गुणशील नामक चैत्य था । श्रेणिक वहाँ का राजा था।
२३२. तत्थ णं रायगिहे महासयए नामं गाहावई परिवसइ, अड्ढे, जहा आणंदो । नवरं अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ निहाण - पउत्ताओ, अट्ठ हिरण्ण- कोडीओ सकंसाओ वुड्ढि - पउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ पवित्थर - पउत्ताओ, अट्ठ वया, दस-गोसाहस्सिएणं वएणं ।
राजगृह में महाशतक नामक गाथापति निवास करता था । वह समृद्धिशाली था, वैभव आदि में आनन्द की तरह था। केवल इतना अन्तर था, उसकी आठ करोड़ कास्य - परिमित स्वर्ण मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, आठ करोड़ कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राएं व्यापार में लगी थीं, आठ करोड़ कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राएं घर के वैभव में लगी थीं। उसके आठ ब्रज- गोकुल गोकुल में दस-दस हजार गायें थी ।
। प्रत्येक
विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में महाशतक की सम्पत्ति का विस्तार कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राओं में बतलाया
१. जइ णं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पणत्ते ?
२. आर्य सुधर्मा से जम्बू ने पूछा-सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने उपासकदशा के सातवें अध्ययन का यदि यह अर्थभाव प्रतिपादित किया तो भगवन् ! उन्होंने आठवें अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया ? (कृपया कहें।)