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[उपासकदशांगसूत्र तोले के सेर के हिसाब से ३२ सेर तौल की वस्तुएं समा सकती थीं, वह शूर्प या कुंभ कहा जाता था। इस सूत्र में आया कांस्य या कांस्यपात्र इसी शूर्प या कुंभ का पर्यायवाची है। भावप्रकाशकार ने जिसे शूर्प या कुंभ कहा है ठीक इस अर्थ में यहाँ कांस्य शब्द प्रयुक्त है, क्योंकि दो द्रोण का शूर्प या कुंभ होता है और यहाँ आए वर्णन के अनुसार दो द्रोण का वह कांस्य पात्र था। शार्ङ्गधर-संहिता में भी इसकी इसी रूप में चर्चा आई है। पत्नियाँ : उनकी सम्पत्ति
२३३. तस्स णं महासयगस्स रेवई पामोक्खाओ तेरस भारियाओ होत्था, अहीण जाव (पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीराओ, लक्खण-वंजन-गुणोववेयाओ, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंग-सुन्दरंगीओ, ससि-सोमाकार-कंत-पिय-दंसणाओ) सुरूवाओ।
___ महाशतक के रेवती आदि तेरह रूपवती पत्नियां थी। (उसने शरीर की पांचों इन्द्रियां अहीन, प्रतिपूर्ण-रचना की दृष्टि से अखंडित, संपूर्ण, अपने अपने विषयों में सक्षम थीं, वह उत्तम लक्षणसौभाग्य सूचक हाथ की रेखाएं आदि, व्यंजन-उत्कर्ष सूचक तिल, मस आदि चिह्न तथा गुण-सदाचार पातिव्रत्य आदि से युक्त थीं, अथवा लक्षणों और व्यंजनों के गुणों से युक्त थीं। दैहिक फैलाव, वजन, ऊंचाई आदि की दृष्टि से वे परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दर थीं। उनका आकार-स्वरूप चन्द्र के समान तथा देखने में लुभावना था,) रूप सुन्दर था।
___२३४. तस्स णं महासयगस्स रेवईए भारियाए कोल-घरियाओ अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ वया, दस-गो-साहस्सिएणं वएणं होत्था। अवसेसाणं दुवालसण्हं भारियाणं कोल-घरिया एगमेगा हिरण्ण-कोडी, एगमेगे व वए, दस-गो-साहस्सिएणं वएणं होत्था।
___महाशतक की पत्नी रेवती के पास अपने पीहर से प्राप्त आठ करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं तथा दसदस हजार गायों के आठ गोकुल व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में थे। बाकी बारह पत्नियों के पास उनके पीहर से प्राप्त एक-एक करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं तथा दस-दस हजार गायों का एक-एक गोकुल व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में था। महाशतक द्वारा व्रत-साधना
२३५. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । परिसा निग्गया। जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ। तहेव सावय-धम्म पडिवज्जइ। नवरं अट्ठ हिरणकोडीओ सकंसाओ उच्चारेई, अट्ठ वया, रेवइपामोक्खाहिं तेरसहिं भारियाहिं अवसेस मेहुणविहिं पच्चक्खाइ। सेसं सव्वं तहेव, इमं च णं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कल्लाकल्लि च णं कप्पइ मे बे-दोणियाए कंस-पाईए हिरण-भरियाए संववहरित्तए।
उस समय भगवान् महावीर का राजगृह में पदार्पण हुआ। परिषद् जुड़ी। महाशतक आनन्द १. शाङ्ग धरसंहिता १.१.१५-२९